शेयर बाज़ार इस समय एफआईआई, डीआईआई और ब्रोकरों की प्रॉपराइटरी फर्मों से निकलकर रिटेल ट्रेडरों के हवाले हो गया है। बड़े संस्थागत निवेशक कोई दांव नहीं खेलना चाहते, जबकि रिटेल ट्रेडरों ने बदहवास होकर उछल-कूद मचा रखी है। हर्षद मेहता से लेकर 1998 का दक्षिण-पूर्व एशिया के मुद्रा संकट और 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट तक का सबक हमारे पास है कि ऐसे ही दौर में बाज़ार खटाक से ज़मीन पकड़ लेता है। जब तक दूसरे मूर्ख मिलते रहेंगे, तब तक बाज़ार उठता रहेगा। लेकिन इधर खरीदा, उधर बेचकर मुनाफा बटोरने का यह चक्र टूटते ही भूचाल आ जाएगा। अब शुक्रवार का अभ्यास…
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