जहां तक निफ्टी का ताल्लुक है, वह अब प्रतिरोध का स्तर तोड़ चुका है और 6500 अंक की तरफ बढ़ रहा है। आज का दिन जय जलाराम का हो गया लगता है। कहने का मतलब यह है कि फिजिकल सेटलमेंट के न होने के चलते बाजार चलानेवालों ने अपनी मनमर्जी से स्टॉक्स को नचाया है। हालांकि इसमें कुछ नया नहीं है। यह हमारे शेयर बाजार का दस्तूर बन चुका है।
अभी बाजार में तूफान के पहले की शांति छाई हुई है जैसे लगता है चुनावों के पहले का दौर हो। असल में बाजार बहुत गौर से संसद में छाए गतिरोध को देख रहा है। वैसे तो तेजड़िए और तमाम कारोबारी जानते हैं कि कोई भी पार्टी इस समय चुनाव में उतरने का जोखिम नहीं उठा सकती। लेकिन मंदड़िए इस आशा में जमकर शॉर्ट हो चले हैं कि घोटाले के चलते राजनीतिक अनिश्चितता बनी रहेगी और कोई बुरी खबर भी आ सकती है। मंदड़ियों का दारोमदार इस तथ्य पर भी टिका है कि आरआईएल का स्टॉक अभी तक तेजी के साथ चलने में नाकाम रहा है जिसका मतलब बाजार की कमजोरी हो सकता है।
मेरी अपनी राय है कि अगर खुदा-न-खास्ता सरकार गिर गई तो निफ्टी को 300 अंक का झटका लग सकता है। हालांकि दूर-दूर तक इसकी कोई गुंजाइश नहीं है। दूसरी तरफ अगर विपक्ष के साथ कोई सहमति बन गई और बजट सत्र तक संसद का गतिरोध खत्म हो गया तो निफ्टी खटाक से 500 छलांग सकता है।
बाजार के मूल्यांकन के बारे में सच यही है कि हम इतने कम मूल्य तक आ चुके हैं कि अब इसमें और कमी की कोई सूरत नहीं दिखती। वैसे भी बाजार अभी कंगालों से पटा पड़ा है तो इसलिए भी इस स्तर से नीचे जाने का सवाल नहीं उठता। हालत यह है कि किसी के पास लाख-दो लाख रुपए भी हों तो वह किसी स्टॉक को 20 फीसदी उछाल सकता है। यह हकीकत बाजार के मौजूदा हालात को बयां करने के लिए काफी है।
आज की तारीख में अगर ऑपरेटरों द्वारा चलाए जा रहे एसवीसी रिसोर्सेज, श्री अष्टविनायक सिनेविजन या मिडफील्ड इंडस्ट्रीज जैसे शेयरों को छोड़ दें तो निवेशकों द्वारा हासिल कोई भी स्टॉक 24 कैरेट के सोने से कम नहीं है। दरअसल, मुझे वाकई यह जानकर बहुत अचंभा हुआ कि ब्रोकरों ने ऊपर गिनाए गए आखिरी दो शेयरों को ऑपरेट करनेवाले शख्स को धन उपलब्ध कराया है। इस शख्स पर सेबी 2007 में बैन लगा चुकी है और उसका एकाउंट भी फ्रीज कर दिया गया था। मैं चौंक गया जब हाल में ब्लॉक डील्स में उसका नाम बेचनेवाले के रूप में नजर आया जबकि कायदे से उसका तो कोई डिमैट एकाउंट ही नहीं है। बाकी क्या कहा जाए! जरा-सी चूक हो जाए तो इस शेयर बाजार में बहुत से लोगों के धन का महल ताश के पत्तों की तरह भरभरा कर गिर जाता है।
भगवान बाकी बचे अच्छे निवेशकों को ऐसा हौसला और सद्बुद्धि दे कि वे रिसर्च रिपोर्टों का सहारा लें और ऑपरेटरों द्वारा संचालित ऐसे स्टॉक्स से दूर रहें। शेयर बाजार में बुद्धिमानी से पैसा बनाना एक कला है। हमें अपनी किस्मत को कोसने के बजाय इस हकीकत को समझना चाहिए क्योंकि शेयर बाजार अब सटोरियों का अड्डा नहीं रहा और वह एक परिपक्व उद्योग बन चुका है।
जिंदगी इतनी छोटी है कि इसे दुश्मनी या गलत कामों में जाया करने का मुझे कोई तुक नहीं नजर आता।
(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। यह कॉलम मूलत: सीएनआई रिसर्च से लिया जा रहा है)