सब कुछ जानते हुए भी डर तो लगता ही है। डरना और लालच करना इंसान का मूल स्वभाव है। शेयर बाज़ार में आनेवाले डर और लालच के दो ध्रुवों में खिंचे रहते हैं। एक तरफ लालच में फंसकर क्रिप्टो के जाल में फंस जाते हैं। दूसरी तरफ हिसाब लगाते हैं कि साल 2008 में रिलायंस पावर के आईपीओ के धमाके के बाद बाज़ार धराशाई हो गया था। इस बार तो ज़ोमैटो, नायिका और पेटीएम के आईपीओ के धमाके बाज़ार को नचाए जा रहे हैं। कहीं इस बार भी बाज़ार धराशाई न हो जाए! क्रिप्टो पर तो कोई नियंत्रण नहीं। लेकिन आईपीओ तो पूरी तरह नियंत्रित हैं। फिर भी यहां ज़ोर का झटका धीरे नहीं, ज़ोर से ही लग रहा है? क्या ऐसी कोई सूरत नहीं कि फायदा ही फायदा हो, घाटा न लगे? हमेशा चांदनी खिली रहे? अब गुरुवार की दशा-दिशा…
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