देश की सबसे बड़ी और एकमात्र सरकारी जीवन बीमा कंपनी, एलआईसी (भारतीय जीवन बीमा निगम) के 55 साल के इतिहास में शायद यह पहली बार हुआ है कि उसे बीमा नियामक संस्था, आईआरडीए (इरडा) की लताड़ खानी पड़ी है।
इरडा ने मृत्यु दावों में लेटलतीफी के खिलाफ एलआईसी को कारण बताओ नोटिस जारी किया था जिस पर उसने 17 अक्टूबर को एलआईसी के कार्यवाहक चेयरमैन डी के मेहरोत्रा व कार्यकारी निदेशक के गणेश के साथ आमने-सामने बात की। इसके बाद कल 28 नवंबर को सुनाए गए आदेश में इरडा के चेयरमैन जे हरि नारायण की तरफ से कहा गया है कि एलआईसी को सभी दावों का निपटान निर्धारित समय में कर लेना चाहिए और इसके लिए उचित सिस्टम बनाना चाहिए।
असल में करीब ढाई साल पहले 21 अप्रैल 2009 को पद्मा पात्रो नाम की एक महिला ने इरडा के पास शिकायत दर्ज कराई थी कि उसे अपने संबंधी की मृत्यु का आंशिक दावा ही एलआईसी ने दिया है। इरडा ने यह शिकायत सीधे एलआईसी के पास भेज दी। बाद में ओम्बड्समैन के आदेश के बाद एलआईसी ने 24 मार्च 2010 को दावे का पूरा भुगतान कर दिया। लेकिन 31 मार्च 2010 को इरडा की टीम ने एलआईसी का औचक निरीक्षण किया तो पाया कि सामूहिक बीमा के 24 ऐसे मामले हैं जिनमें मृत्यु का दावा बीमा कंपनी ने छह महीने से ज्यादा समय से लटका रखा है। 2009-10 के 263 व्यक्तिगत दावों पर जांच ही नहीं पूरी हुई है। यह भी कि 1424 मामलों को निपटाने में कंपनी ने छह महीने से ज्यादा वक्त लिया है।
इसके बाद एलआईसी को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया गया। इसके जवाब में एलआईसी ने कहा कि वह साल भर में करीब सात लाख मृत्यु के दावे और 1.75 करोड़ परिपक्वता के दावे निपटाता है। दावों को निपटाने में उसकी गति विश्वस्तरीय है। लेकिन तकनीकी वजहों, जैसे पॉलिसीधारक द्वारा गलत सूचना या पता दिए जाने के कारण कभी-कभार देरी हो जाती है। इरडा ने एलआईसी का पक्ष सुनने के बाद फैसला सुनाया है कि बीमा कंपनी को अपना कामकाज और बेहतर बनाना होगा।