बीमा नियामक संस्था, आईआरडीए (इरडा) ने शुक्रवार, 22 अक्टूबर की रात से यूनिवर्सल लाइफ प्लान (यूएलपी) पर रोक लगा दी है। यह रोक फिलहाल 4 नवंबर को इरडा के अंतिम दिशानिर्देश आने तक जारी रहेगी। इरडा ने आनन-फानन में गुरुवार को बीमा कंपनियों को एक सर्कुलर भेजकर यह इत्तला दी है। लेकिन खुद इरडा ने ही करीब साल भर पहले 80 फीसदी कमीशन वाले रिलायंस लाइफ के यूएलपी – रिलायंस सुपर इनवेस्टमेंट प्लान को मंजूरी थी। इसके अलावा अन्य जीवन बीमा कंपनियों के यूएलपी भी उसी के मंजूरी के बाद ग्राहकों को बेचे गए हैं।
गौरतलब है कि हर बीमा कंपनी को प्लान का पूरा ब्योरा देने के बाद ही इरडा मंजूरी देता है और इस प्लान में रिलायंस लाइफ की तरफ से स्पष्ट बताया गया था कि वह पहले साल के प्रीमियम का 80 फीसदी हिस्सा प्रीमियम एलॉकेशन चार्ज के रूप में काट लेगी। बीमा पोर्टल चलानेवाले एक विशेषज्ञ ने अपना नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया कि इरडा का पूरा रवैया तदर्थवाद या एडहॉकिज्म का शिकार है। वह नियामक संस्था के बतौर नहीं, बल्कि बीमा उद्योग के संगठन के बतौर काम करता रहा है।
उन्होंने जोर देकर कहा कि यह बात यूलिप के मामले में भी साबित हो चुकी है जिसमें पहले साल प्रीमियम का 40 फीसदी और दूसरे साल 30 फीसदी तक कमीशन के रूप में काट लिया जाता था। अगर पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी ने निवेशकों के साथ हो रहे इस घात का मामला न उठाया होता तो आज भी यूलिप पुराने रूप में जारी रहती। उनका सवाल है कि जब रिलायंस के यूएलपी में 80 फीसदी प्रीमियम एलॉकेशन चार्ज का प्रस्ताव था तो इरडा ने उसी समय उसे निरस्त क्यों नहीं किया?
बता दें कि यूएलपी एक तरह का मिश्र उत्पाद है। इसमें जहां यूलिप के पहलू हैं, वहीं पारंपरिक टर्म इश्योरेंस के तत्व भी हैं। यूलिप का विवाद उठने के बाद कई बीमा कंपनियों ने इरडा की इजाजत लेने के बाद इन्हें जमकर बेचा है। उन्होंने इसे निवेशकों के सामने बेहद आकर्षक तरीके से पेश किया। अभी रिलायंस लाइफ के अलावा मैक्स न्यूयॉर्क लाइफ, अवीवा लाइफ और भारती अक्सा लाइफ ने यूनिवर्सल लाइफ प्लान पेश कर रखे हैं। इन्होंने अभी तक कितनी ऐसी पॉलिसियां बेची हैं, इसका आंकड़ा नहीं मिल सका है क्योंकि इरडा ने इन्हें उपलब्ध नहीं कराया है।
दिक्कत यह भी है कि जब भी इरडा का कोई नया दिशानिर्देश आनेवाला होता है या वह किसी पॉलिसी पर बाद की किसी निश्चित तारीख से रोक लगा देता है तो बीमा कंपनियां ‘लिमिटेड ऑफर’ बताकर ऐसी पॉलिसियां निवेशकों के सिर मढ़ती रही हैं। जैसे, पहली अक्टूबर 2010 से यूलिप पर इरडा के नए दिशानिर्देश लागू होने थे तो उससे पहले के महीनों में बीमा कंपनियों ने पुरानी यूलिप पॉलिसियां लुभावने वादों के साथ निवेशकों को बेची हैं। इरडा इतनी स्पष्ट हरकत को भी नहीं देख पाता। उक्त बीमा विशेषज्ञ का कहना है कि हल्ला मचने पर ही इरडा की खुमारी टूटती है। असल में इरडा के उच्च पदाधिकारियों की सरकार के साथ डीलिंग-सेटिंग बड़ी चौकस है। यही वजह है कि सेबी के साथ मची जंग में उसे नया कानून बनाकर बचाया गया है।
बता दें कि इधर इरडा ने यूएलपी के बारे में नए नियमों का एक प्रारूप तैयार किया है, जिस पर संबंधित पक्षों से 31 अक्टूबर 2010 तक राय मांगी गई है। इसके बाद पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के मुताबिक इसे 4 नवंबर को अंतिम रूप देकर घोषित कर दिया जाएगा। उसका कहना है कि यूएलपी संबंधी नियम वैरिएबल इंश्योरेंस प्रोडक्ट्स (वीआईपी) के लिए जारी किए जानेवाले दिशानिर्देश के तहत आएंगे।
प्रारूप में कहा गया है कि यूएलपी में 45 साल से कम उम्र के ग्राहक के लिए न्यूनतम लाइफ कवर 50,000 रुपए या सालाना प्रीमियम का दस गुना होना चाहिए। 45 साल से ज्यादा उम्र के ग्राहकों के लिए न्यूनतम कवर सालाना प्रीमियम का सात गुना होना जरूरी है। इनकी न्यूनतम अवधि पांच साल होनी चाहिए जिसमें तीन साल की लॉक-इन अवधि होगी यानी तीन साल से पहले कोई निवेशक इससे निकल नहीं सकता। इसमें यह भी प्रस्ताव है कि अगर बीमाधारक नियत तारीख के 12 महीने के भीतर प्रीमियम नहीं जमा करता तो उसका यूएलपी लैप्स हो जाएगा।
इरडा ने गुरुवार को जारी सर्कुलर में कहा है, “नियामक संस्था को यूनिवर्सल लाइफ उत्पादों को बेचने के तौर-तरीकों के बारे में तमाम शिकायतें मिली हैं। इन शिकायतों पर गौर करने के बाद संस्था को लगता है कि पॉलिसीधारकों के हितों की हिफाजत के लिए यूएलपी के लिए बेहतर नियमन फ्रेमवर्क बनाना जरूरी है।” लेकिन जानकारों का कहना है कि एक मीडिया पोर्टल पर कुछ दिनों पहले यूएलपी की कमियां उजागर करने के बाद ही इरडा सक्रिय हुआ है। नहीं तो वह अभी तक पॉलिसीधारकों की शिकायतों पर कुंडली मारकर सोया हुआ था।