सरकार के नीति-नियामकों को लगता है कि अगर देश में खाने-पीने की चीजों को हटाकर कोर मुद्रास्फीति को अपना लिया जाए तो कहीं कोई ऐतराज़ नहीं नहीं करेगा। वे समझा देंगे कि हमारे यहां रिटेल मुद्रास्फीति तय करनेवाले उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में खाने-पीने की चीजों का भार 46% है, जबकि अमेरिका में यह 15%, यूरोप में 20% और यहां तक ब्राज़ील, चीन व दक्षिण अफ्रीका जैसे ब्रिक्स देशों में भी 20-25% है। इसलिए भारत में इस विसंगति को दूर करना ज़रूरी है। लेकिन खाद्य मूल्यों को मौद्रिक नीति निर्धारण से हटा देना देश के आर्थिक संचालन की प्राथमिकता पर मूलभूत सवाल खड़े कर देगा। जिस देश में ज्यादातर परिवारों की सालाना आय पांच लाख रुपए से कम हो और जो इसका करीब 50% खाद्य वस्तुओं पर खर्च करते हों, वहां मौद्रिक नीति का फेरबदल तात्कालिक राहत तो दे सकता है। पर यह देशवासियों के रोजमर्रा के संघर्ष की हकीकत को नज़रअंदाज करना होगा। अमेरिका जैसे सबसे विकसित देश में मौद्रिक नीति का अहम आधार है बेरोज़गारी की ताज़ा स्थिति। हर हफ्ते, हर महीने का डेटा सरकार के पास होता है। अपने यहां तो सरकार का ताज़ा आंकड़ा भी कई साल पुराना होता है। ऊपर से इस तथ्य को कैसे नकार सकते हैं कि 2021 से 2023 के बीच हमारी घरेलू बचत जीडीपी के 22.7% से घटकर 18.4% पर आ गई। इस दौरान वित्तीय बचत ₹17.1 लाख से घटकर ₹14.2 लाख हो गई। आखिर क्यों? अब गुरुवार की दशा-दिशा…
यह कॉलम सब्सक्राइब करनेवाले पाठकों के लिए है.
'ट्रेडिंग-बुद्ध' अर्थकाम की प्रीमियम-सेवा का हिस्सा है। इसमें शेयर बाज़ार/निफ्टी की दशा-दिशा के साथ हर कारोबारी दिन ट्रेडिंग के लिए तीन शेयर अभ्यास और एक शेयर पूरी गणना के साथ पेश किया जाता है। यह टिप्स नहीं, बल्कि स्टॉक के चयन में मदद करने की सेवा है। इसमें इंट्रा-डे नहीं, बल्कि स्विंग ट्रेड (3-5 दिन), मोमेंटम ट्रेड (10-15 दिन) या पोजिशन ट्रेड (2-3 माह) के जरिए 5-10 फीसदी कमाने की सलाह होती है। साथ में रविवार को बाज़ार के बंद रहने पर 'तथास्तु' के अंतर्गत हम अलग से किसी एक कंपनी में लंबे समय (एक साल से 5 साल) के निवेश की विस्तृत सलाह देते हैं।
इस कॉलम को पूरा पढ़ने के लिए आपको यह सेवा सब्सक्राइब करनी होगी। सब्सक्राइब करने से पहले शर्तें और प्लान व भुगतान के तरीके पढ़ लें। या, सीधे यहां जाइए।
अगर आप मौजूदा सब्सक्राइबर हैं तो यहां लॉगिन करें...