गुल टेकचंदानी को आपने देखा भी होगा, सुना भी होगा, अंग्रेजी और हिंदी के बिजनेस चैनलों पर। निवेश सलाहकार हैं, बाजार के विश्लेषक हैं। निवेश उनका धंधा है। लेकिन सबसे बड़ी बात है धंधे में बड़े बेलाग हैं, ईमानदार हैं। बताते हैं कि छात्र जीवन में ही सट्टे का चस्का लग गया था। 1980-81 के आसपास शेयर बाजार से इतना कमाया कि दक्षिण मुंबई में दफ्तर, गाड़ी, बंगला सब कुछ हो गया। पिता को बोले कि मुझे देखो, तुम क्या करते रहे ज़िंदगी भर। लेकिन तीन साल में पैदल हो गए, बोलती बंद हो गई। दफ्तर, गाड़ी, बंगला सब चला गया।
तब से तीस साल बीत चुके हैं। गुल टेकचंदानी निवेश की बड़ी-बड़ी फर्मों व म्यूचुअल फंडों में काम कर चुके हैं। अब स्वतंत्र विश्लेषक व सलाहकार हैं। टो-टूक अंदाज में कहते हैं – शेयर बाजार में निवेश एक ऐसा बिजनेस है जहां आपको अकेले काम करना है। अगर किसी की मदद ली, बिजनेस चैनलों के चक्कर में पड़े तो डूब जाओगे। देखना है तो देखते रहिए, लेकिन उनकी सलाह में मत फंसिए। यहां कमाना है तो खुद मेहनत करनी पड़ेगी। सबकी सुनें, मेहनत करें और फायदा कमाना सीखें।
फायदा कमाना है तो यहां बेचना सीखना पड़ेगा। एक बात जान लें कि शेयर बाजार में निवेश अपने-आप में दौलत नहीं है, बल्कि यह दौलत कमाने की प्रक्रिया का हिस्सा है। इसलिए यहां घुसकर बैठे रहे तो दौलत नहीं बना पाएंगे। चौकन्ना रहना जरूरी है। अगर आप सही वक्त पर नहीं बेचते तो डूब जाएंगे। टेकचंदानी ने गुड़गांव के अपने एक गले पड़े ग्राहक का किस्सा सुनाया कि कैसे 2008 के शुरू में लाख कहने पर भी वह बेचने को तैयार नहीं हुआ। उसके पोर्टफोलियो का मूल्य उस वक्त 33 करोड़ रुपए था। अब करीब तीन करोड़ रह गया है क्योंकि गिरावट की मार सूचकांकों से कहीं ज्यादा मिड-कैप व स्मॉल कैप स्टॉक्स पर लगी है। सही वक्त पर न बेचनेवालों ऐसे बदनसीबों में खुद गुल के पिता भी शामिल हैं।
उनका कहना है कि सीधा-सा फॉर्मूला है कि आप सोच लो कि किस स्टॉक से आपको कितना कमाना है – 20 फीसदी, 30 फीसदी या 40 फीसदी। या, बहुत जोखिम उठाया है तो दोगुना। अब जैसे ही स्टॉक वहां तक पहुंचे, बिना आगे का लालच किए उसे बेचकर निकल लें। कमाया गया धन फिर से बैंक की एफडी या दूसरे ऋण प्रपत्रों जैसे सुरक्षित माध्यमों में लगा दें। आम निवेशक को सुरक्षा और कमाई के बीच इस तरह का सामंजस्य बैठाना पड़ेगा।
बाजार में फैली गड़बड़ियों व ऑपरेटरों के खेल के बारे में गुल टेकचंदानी का कहना है कि जहां कहीं भी लोग होंगे, चोरी होगी। ऐसा नहीं है कि अमेरिका या अन्य विकसित देशों में ऐसी गड़बड़ियां नहीं हैं। लेकिन अपने बाजार के एक पहलू के बारे में उन्होंने हमारे-आप जैसे आम निवेशकों को आगाह किया कि, “जो फ्यूचर्स व ऑप्शंस में निवेश करते हैं, उनका कोई फ्यूचर नहीं है।”
पिछले हफ्ते 1 मार्च को मनीलाइफ द्वारा बजट-विश्लेषण पर आयोजित चर्चा के दौरान उन्होंने बताया कि आज हकीकत में किसी भी लिस्टेड कंपनी में रिटेल निवेशकों की संख्या 7-8 फीसदी से ज्यादा नहीं हैं। रिटेल के नाम पर प्रवर्तक ही घुसे बैठे हैं। अगर किसी कंपनी में प्रवर्तकों की इक्विटी हिस्सेदारी 51 फीसदी है तो पक्का समझ लीजिए कि हकीकत में उनकी हिस्सेदारी कम से कम 65 फीसदी होगी।
उन्होंने जोर देकर कहा कि विदेशी निवेशक किसी भी सूरत में भारतीय बाजार को छोड़ कर जानेवाले नहीं हैं। अमेरिका में सरकार का ऋण 17 लाख करोड़ डॉलर है जबकि वहां की पूरी अर्थव्यवस्था (जीडीपी) ही 12 लाख करोड़ डॉलर की है। जापान में अर्थव्यवस्था के आकार का दोगुना ऋण वहां की सरकार पर है। भारत में जैसा कि बजट में वित्त मंत्री ने बताया कि 2011-12 में भारत सरकार का कुल ऋण जीडीपी का 44.2 फीसदी रहेगा।
शेयर बाजार की मौजूदा स्थिति पर गुल टेकचंदानी का कहना है कि अभी निफ्टी बहुत नीचे गया तब भी 5000 से नीचे नहीं जाएगा। यह इसका बॉटम है। साल के अंत तक यह 6000 पर होगा। लेकिन जब उनसे पूछा गया कि निफ्टी अभी 5500 पर है तो साल भर में 6000 पर भी पहुंच गया तो रिटर्न बमुश्किल 10 फीसदी हुआ। ऐसे में शेयर बाजार में कोई निवेश करेगे ही क्यों? गुल ने स्पष्ट किया इंडेक्स (निफ्टी) में 10 फीसदी रिटर्न का मतलब होता है, स्टॉक्स में 30 फीसदी रिटर्न। तो, यह दौर है कि अच्छे स्टॉक्स को चुन-चुनकर निवेश किया जाए। लेकिन गुल ने न तो ऐसे किसी अच्छे स्टॉक्स का नाम लिया और न ही बताया कि इस समय कौन-से सेक्टरों में निवेश करना चाहिए।
हां, अंत में गुल द्वारा तमाम एनालिस्टों के बारे में कही गई बात जो मुझे नेट पर खोजते-खोजते मिल गई – “आप जानते हैं कि मैं जानता हूं। लेकिन आप नहीं जानते कि मैं नहीं जानता। हालांकि मैं खुद जानता हूं कि मैं नहीं जानता। मगर यह भी जानता हूं कि आप नहीं जानते।” इसी अंदाज में मेरे एक मित्र कहा करते थे कि मैं फ्रेंच न जाननेवाले किसी भी आदमी से फ्रेंच में बात कर सकता हूं।