सरकार आंतरिक सुरक्षा तक को धंधा बनाएगी, निजी क्षेत्र को खुला न्यौता

कानून व्यवस्था व अपराध से लड़ने जैसे आंतरिक सुरक्षा के काम सरकार के होते हैं। लेकिन केंद्र सरकार इसमें भी धंधे की गुंजाइश देख रही है। सरकार ने कहा है कि वह आंतरिक सुरक्षा क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी स्वीकार करने को तैयार है। हालांकि इसके लिए निजी क्षेत्र को उत्कृष्ट तकनीक हासिल करने के वास्ते अपने मुनाफे का 5 से 7 फीसदी हिस्सा अनुसंधान व विकास (आर एंड डी) के कामों पर खर्च करना होगा।

केन्द्रीय गृह सचिव गोपाल के. पिल्लई ने बुधवार को कहा कि गृह मंत्रालय ने निजी क्षेत्र के लिए अनेक महत्वकांक्षी परियोजनाएं पेश की हैं जिनमें निजी क्षेत्र के लिए व्यापक अवसर उपलब्ध हैं। अपराध एवं अपराध खोज नेटवर्क व प्रणाली (सीसीटीएनएस), राष्ट्रीय खुफिया ग्रिड और वीजा ट्रैकिंग सिस्टम जैसे कई काम हैं जहां निजी क्षेत्र के लिए बेहतर अवसर हो सकते हैं।

राजधानी दिल्ली में इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स (आईसीसी) द्वारा आयोजित एक सेमिनार में पिल्लई ने कहा ‘‘मैं कहना चाहूंगा कि आंतरिक सुरक्षा के क्षेत्र में आपके लिए व्यापक अवसर उपलब्ध हैं।’’ गृह सचिव ने हालांकि उन कामों का अलग से विवरण नहीं दिया जिन्हें निजी क्षेत्र के लिए खोला जाएगा, लेकिन माना जा रहा है कि सॉफ्टवेयर विकास, नवीन प्रौद्योगिकी की खोज और अहम सुरक्षा उपकरणों की आपूर्ति का काम निजी क्षेत्र को सौंपा जा सकता है।

पिल्लई ने कहा इसके अलावा सुरक्षित शहर परियोजना (सेफ सिटी प्रोजेक्ट) भी जल्द ही पेश होने वाली है। उन्होंने कहा कि सुरक्षित शहर परियोजना फिलहाल 24 शहरों में शुरू की जा रही है और गृह मंत्रालय चरणबद्ध तरीके से देश के अन्य प्रमुख शहरों में इसका विस्तार करेगा। पिल्लई ने कहा कि एक बार इसके शुरू होने पर नागरिक सुरक्षा के क्षेत्र में सरकार और उद्योगों के लिए आपसी सहयोग की बेहतर संभावनाएं पैदा होंगी।

गृह सचिव ने बैंगलोर की ट्रैफिक प्रबंधन स्कीम का जिक्र करते हुए कहा कि सरकार व निजी क्षेत्र मिलकर शहर के 197 चौराहों पर इस स्कीम को लागू कर रहे हैं। इसका नतीजा सामने है। बैंगलोर में पिछले दो सालों के दौरान दुर्घटनाओं में 20 फीसदी कमी आ गई है और 2000 जिंदगियों को बचाया जा सका है।

जानकारों का कहना है कि देश की बाह्य और आंतरिक सुरक्षा परंपरागत रूप से सरकारों का काम रहा है। बिजली और पानी का इंतजाम निजी क्षेत्र को देना अलग बात है। सरकार अगर होटलों के इंतजाम और एयरलाइंस जैसी सेवाओं से हटती है तब भी बात समझ में आती है। लेकिन जहां तक कानून व्यवस्था की बात है, उसे कोई निष्पक्ष और अवाम के प्रति जवाबदेह एजेंसी ही सही ढंग से कर सकती है। कल को अगर पुलिस थाने निजी क्षेत्र की कंपनियां चलाने लगीं तो बड़ी अजीब स्थिति पैदा हो सकती है। हालांकि सरकार फिलहाल ऐसा नहीं करने जा रही, लेकिन जिस तरह वह आंतरिक सुरक्षा के काम में निजी क्षेत्र को शामिल कर रही है, वह प्रवृत्ति कतई अच्छी नहीं है।

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