अपने यहां शेयर बाज़ार में डेरिवेटिव या कहें तो फ्यूचर्स व ऑप्शंस ट्रेडिंग को लेकर जैसा उन्माद छाया हुआ है, वैसा दुनिया के किसी भी देश में नहीं है। दुनिया के सबसे बड़े स्टॉक एक्सचेंजों में बाज़ार पूंजीकरण के लिहाज से भारत का नंबर अमेरिका, चीन, जापान व हांगकांग के बाद पांचवां है। लेकिन अपना एनएसई लगातार पांच सालों से दुनिया का सबसे बड़ा डेरिवेटिव एक्सचेंज बना हुआ है। स्थिति यह हो गई है कि बाज़ार में ट्रेडिंग के वोल्यूम का 99.6% डेरिवेटिव सेगमेंट में जाता है, जबकि कैश सेगमेंट का वोल्यूम मात्र 0.4% है। डेरिवेटिव सेगमेंट में भी फ्यूचर्स से दस गुना ज्यादा वोल्यूम ऑप्शंस में होता है। ऑप्शंस ही वो सौदे हैं जिनमें रिटेल निवेशक खेलते हैं। ऐसा असंतुलन दुनिया के किसी भी स्टॉक एक्सचेंज में नहीं है। असल में एफ एंड ओ रिटेल निवेशकों के लिए बना ही नहीं है। यह तो उनके लिए हेजिंग का माध्यम है जो कैश सेगमेंट के भौतिक सौदों के भावों के संभावित उतार-चढ़ाव को इससे संभालते हैं। फिर आखिर सेबी और सरकार क्यों नहीं इस सेगमेंट में रिटेल निवेशकों के घुसने पर पाबंदी लगा देते? सेबी तो छह हवा-हवाई नियम बनाकर सोच रही है कि इससे रिटेल या छोटे निवेशकों व ट्रेडरों को ऑप्शंस से खेलने से रोका जा सकता है। अब गुरुवार की दशा-दिशा…
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