अवाम को मुफ्ती तो उद्योग को सब्सिडी!

कोई भी सरकार अगर सचमुच चाहती है कि देश की अर्थव्यवस्था बढ़े तो उसे धन को पूंजी में बदलने का काम करना चाहिए। लेकिन हमारी सरकार तो आर्थिक विकास के नाम पर दस साल से इवेंट और हेडलाइंस मैनेजमेंट में ही लगी है। वो अर्थव्यवस्था को भी राजनीति की तरह मैनेज करती है। जिस तरह उसने 81.35 करोड़ गरीबों को हर महीने पांच किलो मुफ्त अनाज और तमाम राज्यों की करोड़ों महिलाओं को लाडकी बहिन या लाडली बहना योजना में ₹1000-1500 बांटकर अपना वोट बैंक बना लिया, उसी तरह उसे लगता है कि पीएलआई स्कीम में कंपनियों को सब्सिडी देकर अपना मुरीद बना लेगी। सरकार की औद्योगिक नीति का पर्याय बनी इस स्कीम को लॉन्च हुए करीब चार साल हो चुके हैं। इसमें ₹1.97 लाख करोड़ देने का लक्ष्य है। लेकिन रेटिंग एजेंसी इक्रा के डेटा के मुताबिक वित्त वर्ष 2021-22 से 2023-24 के बीच दो साल में इसमें से केवल ₹11,535 करोड़ दिए गए। चालू वित्त वर्ष 2024-25 के बजट में इसके लिए ₹21,086 करोड़ का प्रावधान है। चार साल में स्कीम में आए कुल ₹32,621 करोड़ का एक तिहाई हिस्सा 14 उद्योग क्षेत्रों में से केवल एक मोबाइल फोन निर्माता कंपनियों को गया है और इनमें से ज्यादातर कंपनियां मूलतः चीन की हैं। अब मंगलवार की दृष्टि…

यह कॉलम सब्सक्राइब करनेवाले पाठकों के लिए है.
'ट्रेडिंग-बुद्ध' अर्थकाम की प्रीमियम-सेवा का हिस्सा है। इसमें शेयर बाज़ार/निफ्टी की दशा-दिशा के साथ हर कारोबारी दिन ट्रेडिंग के लिए तीन शेयर अभ्यास और एक शेयर पूरी गणना के साथ पेश किया जाता है। यह टिप्स नहीं, बल्कि स्टॉक के चयन में मदद करने की सेवा है। इसमें इंट्रा-डे नहीं, बल्कि स्विंग ट्रेड (3-5 दिन), मोमेंटम ट्रेड (10-15 दिन) या पोजिशन ट्रेड (2-3 माह) के जरिए 5-10 फीसदी कमाने की सलाह होती है। साथ में रविवार को बाज़ार के बंद रहने पर 'तथास्तु' के अंतर्गत हम अलग से किसी एक कंपनी में लंबे समय (एक साल से 5 साल) के निवेश की विस्तृत सलाह देते हैं। इस कॉलम को पूरा पढ़ने के लिए आपको यह सेवा सब्सक्राइब करनी होगी। सब्सक्राइब करने से पहले शर्तें और प्लान व भुगतान के तरीके पढ़ लें। या, सीधे यहां जाइए।
अगर आप मौजूदा सब्सक्राइबर हैं तो यहां लॉगिन करें...

Existing Users Log In
   
New User Registration
Please indicate that you agree to the Terms of Service *
captcha
*Required field