एफपीआई अब नहीं बाज़ार के निर्णायक

शेयर बाज़ार के निवेश में समझदार कौन? विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) या देशी संस्थागत निवेशक (डीआईआई)? इनमें से कौन तय करता है हमारे बाज़ार की दशा-दिशा? आम मान्यता है कि एफपीआई या एफआईआई ही इसे तय करते हैं। लेकिन यह मान्यता अब हकीकत से दूर जाती नज़र आ रही है। पहले विदेशी निवेशकों के बेचने से अपना बाज़ार जितना गिरता था, अब उतना गिर तो नहीं ही रहा, बल्कि बढ़ जा रहा है। मसलन, अगस्त 2011 में एफपीआई ने अपने यहां 10,836 करोड़ रुपए की शुद्ध बिकवाली की तो सेंसेक्स 8% से ज्यादा गिर गया। अक्टूबर 2018 में विदेशी निवेशकों ने कैश सेगमेंट से 28,921 करोड़ रुपए निकाले तो सेंसेक्स लगभग 5% गिर गया। लेकिन इस बार 3 अक्टूबर से 17 नवंबर 2023 तक एफपीआई ने भारतीय शेयर बाज़ार के कैश सेगमेंट से शुद्ध रूप से 37,472.82 करोड़ रुपए निकाले हैं। मगर सेंसेक्स गिरने के बजाय 0.43% बढ़ गया है। 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के अगले दिन 3 अक्टूबर को सेंसेक्स 65,512.10 पर बंद हुआ था, जबकि बीते शुक्रवार, 17 नवंबर को यह 65,794.73 पर बंद हुआ है। आखिर इसकी क्या वजह है? क्या अब देशी निवेशक ही निर्णायक हो गए हैं? अब सोमवार का व्योम…

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