मुद्रास्फीति के सामने जैसी फजीहत सरकार की हो रही है, वैसी तो विपक्ष के सामने भी नहीं हो पाती। सरकार व रिजर्व बैंक की मशक्कत और अच्छे मानसून के बावजूद खाद्य मुद्रास्फीति की दर 22 अक्टूबर को समाप्त सप्ताह में 12.21 फीसदी पर पहुंच गई। दिवाली 26 अक्टूबर को थी। लेकिन हमारे वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी की ढिठाई तो देखिए जो कह रहे हैं कि कीमतों में यह तेजी त्यौहारी सीजन के चलते आई है क्योंकि इस दौरान मांग अधिक रही।
12.21 फीसदी की दर पिछले नौ महीनों में खाद्य मुद्रास्फीति की सबसे ऊंची दर है। इससे पिछले सप्ताह में यह 11.43 फीसदी थी, जबकि पिछले साल की इसी अवधि में यह 13.55 फीसदी थी। गुरुवार को वाणिज्य मंत्रालय की तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक, साल दर साल आधार पर आलोच्य सप्ताह में सब्जियां 28.89 फीसदी महंगी हुई, जबकि दालों के दाम 11.65 फीसदी बढ़े। वहीं फल 11.63 फीसदी और दूध 11.73 फीसदी महंगा हुआ।
इस दौरान, अंडा और मछली का भाव 13.36 फीसदी बढ़ा। हालांकि, प्याज 20.33 फीसदी सस्ता हुआ, जबकि गेहूं के मूल्य में 1.54 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। खाद्य मुद्रास्फीति के ताजा आंकड़ों पर टिप्पणी करते हुए वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा कि कीमतों में तेजी ‘गंभीर चिंता’ का कारण है, लेकिन इस तेजी का श्रेय त्यौहारी सीजन को जाता है क्योंकि इस दौरान मांग अधिक रही। उन्होंने दिल्ली में संवाददाताओं से कहा कि मुद्रास्फीति गंभीर चिंता की वजह है। इस पर त्यौहारी सीजन का भी असर है। नवंबर से आगे, वित्त वर्ष के बाकी चार महीने में वास्तविक रुख का पता चलेगा।
रिजर्व बैंक मांग को घटाकर मुद्रास्फीति पर काबू पाने के लिए मार्च 2010 के बाद से 13 बार ब्याज दरें बढ़ा चुका है। लेकिन अभी तक इसका कोई असर होता नहीं दिख रहा। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी के अर्थशास्त्री एन आर भानुमूर्ति का कहना है, “खाद्य मुद्रास्फीति को मौद्रिक नीति से नहीं संभाला जा सकता। ब्याज दरें अब चरम पर पहुंच चुकी हैं क्योंकि मांग के मिटने का संकेत मिलने लगा है।”