कल तक हमारे वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी कह रहे थे कि रुपए की हालत विदेशी वजहों से बिगड़ी है और रिजर्व बैंक के हस्तक्षेप से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन आज शेयर बाजार को लगे तेज झटके से वे ऐसा सहम गए कि बाकायदा बयान जारी कर डाला कि, “रिजर्व बैंक रुपए की हालत पर बारीक निगाह रखे हुए हैं। मुझे यकीन है कि जो भी जरूरी होगा, रिजर्व बैंक करेगा।” यही नहीं, उन्होंने कहा कि डेरिवेटिव सौदों की एक्सपायरी के पहले बाजार में अस्थिरता आती ही है।
बुधवार को दोपहर दो बजे शेयर सूचकांकों में आई करीब 2.50 फीसदी गिरावट के संदर्भ में वित्त मंत्री ने कहा कि भारत का आर्थिक विकास का आधार और मूलभूत पहलू मजबूत हैं और आज दुनिया की बदरंग होती सूरत के बीच भारत के ये पहलू और भी आकर्षक हो गए हैं। उन्होंने कहा कि वैश्विक अनिश्चितता के बावजूद भारतीय शेयर बाजार में एफआईआई (विदेशी संस्थागत निवेशकों) का निवेश अक्टूबर व नवंबर में धनात्मक रहा है। अक्टूबर में एफआईआई निवेश 63.40 करोड़ डॉलर और नवंबर में 22 तारीख तक 21.30 करोड़ डॉलर रहा है। ध्यान दें कि कल यही वित्त मंत्री जी कह रहे थे कि एफआईआई ने निवेश निकाला है, जिसके चलते रुपया इतना ज्यादा गिरा है।
बुधवार को असल में जब खबरें आईं कि अमेरिका में तीसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) के दौरान आर्थिक विकास दर अपेक्षा से कम रही है और स्पेन में सरकारी बांडों के दाम घट गए हैं यानी यील्ड बढ़ गई है, तब भारतीय बाजार में घबराहट छा गई है। एफआईआई अपना निवेश खींचने लगे। फौरी आंकड़ों के मुताबिक शाम तक इक्विटी बाजार में उनकी शुद्ध बिकवाली 1186.42 करोड़ रुपए की रही है।
कमाल की बात है कि वित्त मंत्री ने डेरिवेटिव सौदों पर भी टिप्पणी की। उनका कहना था कि नवंबर के फ्यूचर्स सौदों की एक्सपायरी के एक दिन पहले ट्रेडिंग में अस्थिरता रहती ही है। नवंबर के फ्यूचर्स कांट्रैक्ट का समापन कल 24 नवंबर, गुरुवार को होना है। श्री मुखर्जी ने कहा कि साथ ही रुपए में मची खलबली भी निवेशकों को पस्त किए हुए है। हालांकि दिन में रुपए की विनिमय दर 52.73 के न्यूनतम स्तर के बाद सुधरकर 52.12 रुपए प्रति डॉलर हो गई। जाहिर है कि इतना तकनीकी बयान खुद वित्त मंत्री प्रणव दा का नहीं हो सकता। उनके किसी सहयोगी बाबू ने ही इसे ड्राफ्ट किया होगा।
वित्त मंत्री श्री मुखर्जी ने कहा कि अमेरिका के जीडीपी की विकास दर में और भी ज्यादा संशोधन की अपेक्षा थी। लेकिन तीसरी तिमाही में उसे 2.5 फीसदी के अग्रिम अनुमान से थोड़ा नीचे 2 फीसदी पर लाया गया है। इसके चलते अमेरिकी बाजार कल मंगलवार को 0.5 फीसदी गिरकर बंद हुए। एशियाई शेयर बाजार भी 2 से 2.5 फीसदी गिरावट का शिकार हो गए। इसकी खास वजह ऑस्ट्रेलिया की संसद के निचले सदन में माइनिंग टैक्स का अनुमोदन और यूरोप के ऋण संकट को लेकर घहराती चिंताएं हैं।