देश की नई पीढ़ी हो सकता है कि वित्तीय रूप से हम से कहीं ज्यादा साक्षर हो। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) स्कूलों में अगले शैक्षणिक वर्ष से वित्तीय साक्षरता को अलग विषय के रूप में पढ़ाने की तैयारी में जुटा हुआ है। यह नैतिक विज्ञान की तरह एक अलग विषय होगा।
वित्तीय साक्षरता के तहत विद्यार्थियों को शेयर बाजार की ट्रेडिंग, ऑप्शंस व फ्यूचर्स जैसे डेरिवेटिव्स की जटिलता के साथ इनसाइडर ट्रेडिंग का भी ज्ञान कराया जाएगा। खबरों के मुताबिक वित्त मंत्रालय स्कूलों के पाठ्यक्रम में वित्तीय साक्षरता को शामिल करने पर सहमत हो गया है। मंत्रालय ने वित्तीय क्षेत्र के नियामकों – पूंजी बाजार नियामक सेबी, बीमा बाजार नियामक इरडा (आईआरडीए) और बैंकिंग व मुद्रा क्षेत्र के नियामक भारतीय रिजर्व बैंक के साथ मिलकर शिक्षा के पूरे कार्यक्रम को अंतिम रूप से दे दिया है।
अभी तक इस मामले में इरडा एकदम फिसड्डी रहा है। वह चंद विज्ञापन जारी कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेता है। इसीलिए सबसे ज्यादा मिससेलिंग बीमा उत्पादों में होती है। लेकिन सेबी और रिजर्व बैंक बाकायदा समाज के अलग-अलग हिस्सों में वित्तीय साक्षरता का कार्यक्रम चलाते रहे हैं। सेबी ने तो नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सिक्यूरिटीज मार्केट्स (एनआईएसएम) जैसे संस्थान का प्रवर्तन किया है जो इस कार्यक्रम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेता है। सीबीएसई ने भी अपने स्तर पर काफी कुछ काम किया है।
असल में सरकार के वित्तीय समावेश कार्यक्रम की सफलता के लिए वित्तीय साक्षरता जरूरी है। कोरिया जैसे देशों तक में हाईस्कूल के स्तर से ही वित्तीय साक्षरता का विषय कोर्स में रखा गया है। अपने यहां भी रिजर्व बैंक के गवर्नर दुव्वरि सुब्बाराव से लेकर वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी तक बार-बार अपने भाषणों में वित्तीय साक्षरता का मुद्दा उठाते रहे हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया है कि वित्तीय समावेश का मतलब महज बैंक खाता खोलने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके लिए शेयर बाजार से लेकर बीमा व पेंशन उत्पादों की अच्छी समझ जरूरी है। वित्त मंत्री ने हाल ही में कहा था कि वित्तीय बाजार इस समय निवेशकों के सामने जटिल विकल्प पेश करते हैं, लेकिन निवेशक या ग्राहक अच्छी तरह सोच समझकर फैसला ले सकें, इसके लिए वित्तीय साक्षरता जरूरी है।
लेकिन वित्तीय मंत्रालय नहीं चाहता कि वित्तीय साक्षरता कोई बोझिल विषय बन जाए। इसलिए इसे आकर्षक तरीके से तैयार किया जा रहा है ताकि स्कूली विद्यार्थियों को यह रुचिकर लगे। इसमें वित्तीय उत्पादों की मिलसेलिंग से लेकर वित्तीय निवेश में होनेवाली गड़बड़ियों से भी परिचित कराया जाएगा। बता दें कि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 1992 में हर्षद मेहता के प्रतिभूति घोटाले तक देश में कम से कम दो करोड़ निवेशक थे। लेकिन 19 सालों बाद इन आम निवेशकों की संख्या अब घटकर 80 लाख तक सिमट गई है। सरकार का मानना है कि एक बार आम लोगों की बचत पूंजी बाजार में आने लग गई तो एफआईआई जैसे विदेशी निवेशकों पर निर्भरता घटाई जा सकती है।