जुलाई से नहीं चलेगा, उसी दाम में छोटे पैक का खेल

रोजमर्रा के उपयोग की चीजें बनानेवाली कंपनियों ने दो-तीन सालों से सिलसिला चला रखा है कि दाम स्थिर रखते हुए वे पैक का साइज या वजन घटा देती हैं। उनका तर्क रहता है कि वे कच्चे माल की लागत को समायोजित करने के लिए ऐसा करती है। लेकिन अगले साल जुलाई से वे ऐसा नहीं कर पाएंगी। सरकार पारदर्शिता लाने में जुट गई ताकि ग्राहक को सही-सही पता रहे कि वह कितने दाम में कितना सामान खरीद रहा है।

केंद्रीय उपभोक्ता मामलात मंत्रालय ने पैकेज्ड जिसों के लिए कुछ नियम तैयार किए हैं, जिन्हें बाकायदा 24 अक्टूबर 2011 को अधिसूचित किया जा चुका है। इसमें करीब 20 ऐसे उत्पाद गिनाए गए हैं जो तय पैक साइज में ही बेचे जा सकते हैं। इनमें बेबी फूड, बिस्किट, ब्रेड, चाय, कॉफी, खाने के तेल, पेय, मिल्क पाउडर, मक्खन, आटा, नमक, मिनरल वॉटर, साबुन, डिटरजेंट, सीमेंट व पेंट वगैरह शामिल हैं।

कंपनियां अभी तक साबुन से लेकर बिस्किट व चाय-कॉफी तक में पैक का वजन घटा देती थीं। दाम वही रहता है, इसलिए आम उपभोक्ता को इसका पता भी नहीं चलता था। जैसे, कॉफी के पैक का वजन 175 ग्राम से घटाकर 170 ग्राम कर देना, डिटरजेंट के पैक का वजन एक किलो के बजाय 750 ग्राम और 500 ग्राम के बजाय 400 ग्राम कर देना आम बात है। सीमेंट व पेंट तक में भी ऐसा होता रहा है। लेकिन अब कॉफी 25 ग्राम, 50 ग्राम, 100 ग्राम, 500 ग्राम व एक किलो के पैक में ही बेची जा सकती है। डिटरजेंट व मिल्क पाउडर में भी 50 ग्राम के ऊपर के पैक पर इस तरह की सीमा लगाई गई है। हालांकि इनमें 50 ग्राम से नीचे कोई बंदिश नहीं है।

जो भी कंपनियां नियमों का उल्लंघन करती पाई जाएंगी, उन पर 25,000 रुपए से लेकर एक लाख रुपए का जुर्माना लगाया जाएगा। हालांकि इतने जुर्माने का पारले, आईटीसी या हिंदुस्तान यूनिलीवर जैसी कंपनियों के लिए कोई मतलब नहीं है। लेकिन इसका सांकेतिक असर तो पड़ेगा।

बड़ी-बड़ी कंपनियां फिलहाल इस कोशिश में लगी हैं कि 1, 2, 5, 10 व 20 रुपए जैसे मूल्य को उन्हें स्थिर रखने की छूट मिल जाए क्योंकि उनका कहना है कि ये दाम ग्राहक की मानसिकता में रचे बसे हैं और इनसे वे कम आय के लोगों को मुद्रास्फीति के असर से बचाती हैं। हालांकि असल बात है कि वे गरीब लोगों को भी खींचकर अपना वोल्यूम बढ़ाती हैं। लेकिन सरकार उनकी बात को मानने के प्रति गंभीर नज़र आती है।

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