कंपनियों में मालिकों से बड़े मालिक बने एफआईआई, शेयरधारिता ज्यादा

इनफोसिस, एचडीएफसी बैंक, एलआईसी हाउसिंग फाइनेंस और इंडिया इनफोलाइन जैसी 45 से ज्यादा कंपनियों में विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की शेयरधारिता प्रवर्तकों से ज्यादा हो गई है। स्टॉक एक्सचेंजों के पास उपलब्ध सितंबर तक के आंकड़ों के मुताबिक इनफोसिस की इक्विटी में एफआईआई की हिस्सेदारी 36.66 फीसदी है, जबकि प्रवर्तकों की हिस्सेदारी उनसे 20.62 फीसदी कम 16.04 फीसदी ही है।

इसी तरह एचडीएफसी बैंक में प्रवर्तकों की हिस्सेदारी 23.23 फीसदी है, जबकि एफआईआई का निवेश 29.30 फीसदी है। एलआईसी हाउसिंग फाइनेंस की इक्विटी में प्रवर्तकों का निवेश 36.54 फीसदी है, जबकि एफआईआई की शेयरधारिता 37.80 फीसदी है। गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी इंडिया इनफोलाइन में एफआईआई का निवेश 38.99 फीसदी है, जबकि प्रवर्तको की हिस्सेदारी 31.63 फीसदी है।

ये सारे आंकड़े कोई गोपनीय नहीं हैं। इन्हें बीएसई या एनएसई की वेबसाइट से आसानी से हासिल किया जा सकता है। इस सूची में जो अन्य जानी-पहचानी कंपनियां हैं, उनमें जैन इरिगेशन (56.44 फीसदी बनाम 30.35 फीसदी), विजय माल्या की यूनाइटेड स्पिरिट्स (52.93 फीसदी बनाम 30.35 फीसदी), यस बैंक (45.23 फीसदी बनाम 26.28 फीसदी), डॉ. रेड्डीज लैब्स (26.32 फीसदी बनाम 25.61 फीसदी), इंडिया सीमेट (27.23 फीसदी बनाम 25.77 फीसदी), महिंद्रा एंड महिंद्रा (26.39 फीसदी बनाम 25.18 फीसदी), वैभव जेम्स (20.30 फीसदी बनाम 13.38 फीसदी), करूर वैश्य बैंक (20.92 फीसदी बनाम 3.27 फीसदी) और सुबेक्स लिमिटेड (16.05 फीसदी बनाम 11.69 फीसदी शामिल हैं। असल में एकॉर्ड फिनटेक प्रा. लिमिटेड ने ऐसी 47 लिस्टेड कंपनियों की सूची छांटकर निकाली है।

आईसीआईसीआई सिक्यूरिटीज के एक अन्य अध्ययन के अनुसार बीएसई-500 कंपनियों में एफआईआई की शेयरधारिता सितंबर 2009 में 10.9 फीसदी थी, जबकि सितंबर 2011 तक यह बढ़कर 12.6 फीसदी हो गई है। उसका कहना है कि यह दिखाता है कि एफआईआई की दिलचस्पी तमाम ऊंच-नीच के बावजूद भारत की विकासगाथा में बनी हुई है। जिस तरह भारत ने वैश्विक वित्तीय संकट के बीच भी अपनी स्थिति मजबूत बनाए रखी, उससे एफआईआई का विश्वास हमारे बैंकिंग सेक्टर के प्रति बढ़ा है। उसका भरोसा है कि देश जल्दी ही मुद्रास्फीति, ऊंची ब्याज दरों और कमजोर होते जाते रुपए के झोल से भी निकल आएगा।

एफआईआई की बढ़ती शेयरधारिता वैसे ज्यादा चिंता की बात नहीं है क्योंकि वे कंपनियों के प्रबंधन में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाते। वे यहां से नोट बनाने आए हैं, कंपनियां चलाने नहीं। वैसे भी आईसीआईसीआई सिक्यूरिटीज के अध्ययन के मुताबिक अब भी बीएसई-500 सूचकांक में शामिल कंपनियों में भारतीय प्रवर्तक ही सबसे बड़े शेयरधारक हैं। सितंबर 2011 तक की स्थिति के अनुसार इन कंपनियों में प्रवर्तकों की समग्र हिस्सेदारी 57.7 फीसदी है, वहीं एफआईआई के पास इनके 12.6 फीसदी, म्यूचुअल फंडों के पास 3.1 फीसदी, पब्लिक के पास 10.4 फीसदी और अन्य श्रेणियों के पास 16.2 फीसदी शेयर थे। वैसे, इस अध्ययन में साफ नहीं है क्योंकि उसने पब्लिक और अन्य में किसको गिना है।

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