गोदामों में पड़ा अनाज गरीबों को क्यों नहीं!

आदिवासी इलाकों में स्थित राशन दुकानों में खराब खाद्यान्न दिए जाने का आरोप लगाते हुए वामपंथी दल सीपीएम ने इसकी जांच विशेष निगरानी एजेंसी से कराए जाने और गोदामों में पड़ा खाद्यान्न गरीबों में वितरित किए जाने की मांग की है। बता दें कि करीब सात महीने पहले अगस्त 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने खाद्यान्न के कुप्रबंधन पर केंद्र सरकार को लताड़ पिलाई थी और कहा था कि बरबाद हो रहा अनाज मुफ्त में गरीबों को बांट दिया जाना चाहिए।

गुरुवार को राज्यसभा में शून्यकाल के दौरान सीपीएम की वृंदा करात ने यह मुद्दा उठाते हुए कहा कि देश में एक ओर खाद्यान्न गोदामों में सड़ रहा है वहीं दूसरी ओर बड़ी आबादी कुपोषण की शिकार है। उन्होंने कहा कि एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) ने आदिवासी इलाकों की राशन दुकानों से खाद्यान्न के नमूने लिए और पाया कि खाद्यान्न सड़ा हुआ है, उसमें घुन लगा हुआ है और उसमें गंदगी भी है।

वृंदा ने सदन में आदिवासी बहुल इलाकों की राशन दुकानों से लिए गए गेहूं और चावल के नमूने भी दिखाए। उप सभापति के रहमान खान ने उन्हें ऐसा न करने के लिए कहा। सीपीएम सदस्य ने कहा ‘‘क्या आदिवासियों का कोई महत्व नहीं है जो उन्हें इस तरह का अनाज दिया जा रहा है। वे लोग दूरदराज के इलाकों में रहते हैं और वहां क्या हो रहा है, इसका पता नहीं चल पाता।’’

वृंदा ने मांग की कि पूरे मामले की जांच विशेष निगरानी एजेंसी से कराई जानी चाहिए, खराब खाद्यान्न वापस ले कर अच्छा अनाज दिया जाना चाहिए और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि गोदामों में अनाज सड़ने के बजाय गरीबों को बांट दिया जाए। विभिन्न दलों के सदस्यों ने स्वयं को इस मुद्दे से संबद्ध किया।

मनोनीत सदस्य अशोक गांगुली ने खाद्यान्न प्रबंधन का मुद्दा उठाते हुए कहा कि अच्छा मानसून होने की वजह से इस साल गेहूं का 8.2 करोड़ टन का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ। लेकिन प्रबंधन की समस्या की वजह से बड़ी मात्रा में गेहूं खराब हो रहा है।

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