नौकर मालिक की सेवा करता है क्योंकि इससे उसका दाना-पानी चलता है। नौकरशाह सरकार की बंदगी करता है क्योंकि वहीं से उसे मौज के साधन मिलते हैं। लेकिन अर्थशास्त्री के सामने ऐसी कोई मजबूरी नहीं। फिर भी वी. अनंत नागेश्वरन अपने पेशे की गरिमा ताक पर रख मोदी सरकार और उसके कॉरपोरेट आकाओं की सेवा में लिप्त हैं। वे रिटेल मुद्रास्फीति से खाने-पीने की चीजों को हटा कोर मुद्रास्फीति को लाना चाहते हैं ताकि रिजर्व बैंक बेधड़क ब्याज दरें घटा सके और सरकार से लेकर कॉरपोरेट तक को सस्ता उधार मिल जाए। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि भारत में सबसे ज्यादा कर्ज सरकार लेती है। इसलिए ब्याज दरें घटने का सबसे ज्यादा फायदा उसे ही मिलता है। रिजर्व बैंक को समझना पड़ेगा कि खाद्य मुद्रास्फीति से श्रम की लागत बढ़ जाती है जिसका असर कोर मुद्रास्फीति पर पड़ना तय है। उसके ब्याज दर कम रखने से सरकार की ऋण लागत तो कम हो जाएगी। लेकिन कम ब्याज मिलने से बैंकों में लोगों की जमा भी घट जाएगी, जैसा कि कई महीनों से हो भी रहा है। वहीं, अगर रिजर्व बैंक कोर के बजाय खाद्य व ईधन समेत रिटेल मुद्रास्फीति को ही आधार बनाए रखता है तो सरकार को मजबूरन सप्लाई बढ़ाने का इंतज़ाम करना ही होगा। अब शुक्रवार का अभ्यास…
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