शेयर बाज़ार के निवेशक को न तो परम आशावादी होना चाहिए और न ही चरम निराशावादी। उसे दरअसल घनघोर यथार्थवादी होना चाहिए। आम सामाजिक व राजनीतिक जीवन में जिसे अवसरवादी होना भी कहते हैं। जैसी बहे बयार, पीठ तब तैसी दीजे। लेकिन अवसरवादी होने में नकारात्मकता है, जबकि यथार्थवादी होना सकारात्मक सोच है। जो जैसा है, उसे वैसा ही देखना और स्वीकार करना। शेयर बाज़ार उठता है, गिरता है। फिर उठ जाता है। यह उसका स्वभाव है।औरऔर भी