नवंबर 2016 में लगी नोटबंदी की मार से छोटे व मझोले उद्योग अभी तक उबर नहीं पाए हैं। फिर, जुलाई 2017 के बाद जीएसटी के खराब अमल ने निर्यातकों को निचोड़ दिया। वे सरकारी नौकरशाही को संतुष्ट नहीं पा रहे कि उन्होंने निर्यात का शिपमेंट कर दिया है तो उनका टैक्स रिफंड अटका पड़ा है। यह रकम करीब 10,000 करोड़ रुपए है और इतनी कार्यशील पूंजी छोटे निर्यातक आसानी से जुटा नहीं पाते। अब शुक्रवार का अभ्यास…औरऔर भी

मुद्रा कमज़ोर होने पर देश का निर्यात बढ़ जाता है। लेकिन अपने यहां ऐसा नहीं हो रहा। हमारा निर्यात अप्रैल-2018 में 5.1% बढ़ा है। मगर, मार्च-2018 में खत्म वित्त वर्ष में कुल निर्यात 303 अरब डॉलर हुआ, जो साल भर पहले से ज्यादा होने के बावजूद वित्त वर्ष 2013-14 के 310 अरब डॉलर के निर्यात से कम है। ऐसा तब, जब इस दौरान विश्व अर्थव्यवस्था सुधर गई और हमारा जीडीपी भी बढ़ा है। अब गुरुवार की दशा-दिशा…औरऔर भी

रुपए के कमज़ोर और कच्चे तेल के महंगा होते जाने से देश की अर्थव्यवस्था पर बहुत नकारात्मक असर पड़ेगा। कच्चे तेल का आयात बिल बढ़ता जाएगा। देश से ज्यादा डॉलर निकलेंगे। नतीजतन चालू खाते का घाटा बढ़ता जाएगा। सरकार को ज्यादा ऋण उठाना पड़ेगा तो देश का राजकोषीय घाटा बढ़ जाएगा। महंगाई भी बढ़ेगी तो रिजर्व बैंक किसी भी सूरत में ब्याज दर नहीं घटा पाएगा। ऊपर से साल भर बाद चुनाव हैं। अब बुधवार की बुद्धि…औरऔर भी

रुपए की कमज़ोरी से समान आयात के लिए हमें ज्यादा डॉलर चुकाने होंगे। भारत अपनी 83% तेल ज़रूरत आयात से पूरी करता है। लेकिन कच्चे तेल का अंतरराष्ट्रीय दाम बढ़ते-बढ़ते 80 डॉलर/बैरल को पार कर चुका है। यह बीते चार साल का उच्चतम स्तर है। मई 2014 से जनवरी 2016 के बीच कच्चे तेल के दाम 74% लुढ़क गए थे तब प्रधानमंत्री मोदी ने इसे अपनी किस्मत कहा था। लेकिन आगे संकट है! अब मंगलवार की दृष्टि…औरऔर भी

रुपया कमज़ोर पड़ता जा रहा है। डॉलर के मुकाबले रुपया 68 के नीचे जा चुका है। जानकार कहते हैं कि जिस तरह विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक लगातार भारत से डॉलर निकाल रहे हैं और रिजर्व बैंक के तमाम उपाय जिसे नहीं रोक पा रहे, उसमें रुपया जल्दी ही 70 तक पहुंच जाए तो कोई आश्चर्य नहीं। इससे आईटी समेत तमाम निर्यातक कंपनियों को लाभ होगा। लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए यह अशुभ संकेत है। अब सोमवार का व्योम…औरऔर भी