भगवान और धर्म के नाम पर खुल्लमखुल्ला लूट सदियों से जारी है। कभी राजा-महाराजा से लेकर पंडित, पादरी और मुल्ला यह काम करते थे। इतने अनुष्ठान कि लोगों का तर्क तेल लेने चला जाए। अब बाजार के जमाने में वही काम विज्ञापन करने लगे हैं।और भीऔर भी

भगवान पर ध्यान लगा हम अपने अंदर की शक्तियों और बाहर की ताकतों को साधते हैं। भगवान यहीं तक सीमित रहे तो बड़ा कल्याणकारी है। लेकिन, कोई जब दूसरों को खींचने के लिए भगवान का इस्तेमाल करने लगता है तो वह बड़ा विनाशकारी हो जाता है।और भीऔर भी

इंसानों की इस दुनिया में भगवान की तलाश बड़ी रिस्की है। न जाने किस भेष में भगवान नहीं, कोई शैतान या महाठग मिल जाए! फिर, जब सब कुछ अपने ज्ञान, कर्म और नेटवर्किंग से मिलना है तो ऐसा संगीन रिस्क उठाने में फायदा ही क्या।  और भीऔर भी

हम अपने साथ जबरदस्त बोझा लिये फिरते हैं। अनसुलझी समस्याएं, अनसुलझे सवाल। टूटी तमन्ना, अधूरी चाह। न जाने क्या-क्या, सारा गड्डमगड्ड। जगते समय यह बोझा दिखता नहीं। लेकिन सोते ही छत्ते से निकल मधुमक्खियों की तरह टूट पड़ता है।और भीऔर भी

चोर और सेंधमार डरते हैं इस बात से कि घरवाले जाग न जाए। इसी तरह सरकार व सत्ताधारी दल इस बात से डरते हैं कि जनता जाग न जाए, उसे सच्ची बात पता न चल जाए। इसलिए उनका तंत्र हमेशा असली मुद्दों से ध्यान भटकाने की जुगत में लगा रहता है।और भीऔर भी

कल जो हुआ, सो हुआ। कल क्या होगा, चिंता इसकी है। कारण, करने व सोचने का तरीका एकदम सही होने के बावजूद हम गलत साबित हो सकते हैं क्योंकि हम अतीत को नहीं, बल्कि भविष्य को साध रहे होते हैं और भविष्य में हमेशा रिस्क होता है।और भीऔर भी

टेक्नोलॉजी रिश्तों को घर-परिवार की सीमा से निकालकर अनंत वर्चुअल विस्तार दे देती है। लेकिन उसका हल्का-सा ग्लिच भी इन रिश्तों को खटाक से तोड़ देता है। फिर बच जाती है एक कचोट और यह अहसास कि हम कितने असहाय हो गए हैं।और भीऔर भी

देवी-देवताओं का काम भी दो हाथों से नहीं चलता तो इंसान की क्या बिसात! मगर हम अपने गुमान में इतने मशरूफ रहते हैं कि अपनों तक का सहयोग देख नहीं पाते। हकीकत यह है कि जब तक हम सहयोग को भाव नहीं देते, तब तक बड़े नहीं बन सकते।और भीऔर भी