धन कम लोगों को किस्मत और ज्यादातर लोगों को कला और जमाने की समझ से मिलता है। इसलिए अगर आप गरीब पैदा हुए तो इसमें आपकी कोई गलती नहीं। लेकिन आप अगर गरीब रहकर ही मर गए तो इसमें सरासर गलती आपकी है।और भीऔर भी

हम जो जैसा है, उसे वैसा नहीं देख पाते, बल्कि अपनी सोच के हिसाब से उसे टेढ़ा-मेढ़ा बना देते हैं। कभी-कभी तो जो नहीं है, उसको भी देख लेते हैं। जब सही देखा नहीं तो फैसले भी सही नहीं ले पाते। लेकिन नाकाम होने पर किस्मत को कोसते हैं।और भीऔर भी

जब आर्थिक विकास दर घटकर 5.3 फीसदी पर आ गई हो, अप्रैल के औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईआई) में महज 0.1 फीसदी बढ़त दर्ज की गई हो और निवेश जगत में हर तरफ मायूसी का आलम हो, तब अगर 23 में से 17 अर्थशास्त्री मान रहे थे कि रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति की पहली मध्य-तिमाही समीक्षा में रेपो दर में चौथाई फीसदी कमी (8 फीसदी से 7.75 फीसदी) कर देगा तो उनका मानना कोई नाजायज नहीं था। लेकिनऔरऔर भी

सिर्फ भावनाओं से कुछ नहीं हो सकता। लेकिन भावनाओं के बिना भी कुछ नहीं हो सकता। भावनाएं उस लीवर का काम करती हैं जो कम बल से ज्यादा वजन उठाने की क्षमता देता है। भावनाएं ही हमें सक्रिय बनाती हैं। अन्यथा हम यूं ही पड़े रहें।और भीऔर भी

शरीर है। क्रिया-प्रतिक्रिया की लीला ही जीवन है, उसकी चमक है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि अंदर चमक देनेवाली कोई वस्तु अलग से बैठी है। सूरज जो इस सृष्टि के जीवन का आधार है, उसमें रौशनी फेंकने वाली कोई आत्मा नहीं विराजती।और भीऔर भी

ज़िंदगी में सुरक्षा की ही नहीं, असुरक्षा की भी ज़रूरत होती है। बूढ़े या असहाय लोग सुरक्षा की चाह रखें तो समझ में आता है। लेकिन नौजवानों के लिए यह चाह अच्छी नहीं क्योंकि असुरक्षा के बिना वे जीवन के तमाम जरूरी सबक नहीं सीख पाते।और भीऔर भी

प्रकृति है। उसके नियम हैं। समाज है। उसके भी नियम हैं। समाज के अलग-अलग घटकों के भी नियम हैं। जो प्रकृति और समाज के नियमों को समझते हैं, वे ही नया कुछ रचते हैं। बाकी या तो बहती गंगा में हाथ धोते हैं या औरों के हाथों ठगे जाते हैं।और भीऔर भी

मौजूदा समाज की सबसे बड़ी खामी यह है कि वो व्यक्ति की अंतर्निहित क्षमता के संपूर्ण विकास का मौका नहीं देता। गुजर-बसर के लिए न चाहते हुए भी क्या से क्या करना पड़ता है! तभी तो यहां मुठ्ठी भर को छोड़कर ज्यादातर लोग निर्वासित हैं।और भीऔर भी

ये कैसा लोकतंत्र है जहां हम हर पांच साल पर सुशासन नहीं, कुशासन के लिए अपने राजनीतिक प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं? ये कैसा जनतंत्र है जहां हमें अपनी बुद्धि व समझ से नहीं, बॉस के आदेश के हिसाब से काम करना पड़ता है?और भीऔर भी

जिंदगी के हाईवे पर मुसीबतें इसलिए नहीं आतीं कि आप लस्त होकर चलना ही बंद कर लें, बल्कि मुसीबतों का हर दौर आपको वह मौका उपलब्ध कराता है जब आप ठहरकर अब तक के सफर की समीक्षा और आगे की यात्रा की तैयारी कर सकते हैं।और भीऔर भी