1. कमोडिटी के स्पॉट व फ्यूचर भाव क्या होते हैं? कमोडिटी को हिंदी में जिंस और स्पॉट को हाजिर व फ्यूचर को वायदा कहते हैं। लेकिन हम बोलचाल के कारण इनके लिए अंग्रेजी शब्दों का ही इस्तेमाल करेंगे। स्पॉट भाव तो सीधा-सीधा वह भाव है जिस पर हम नकद देकर कोई जिंस खरीदते हैं। इसमें भी रिटेल और होलसेल भाव अलग होते हैं। फ्यूचर भाव भविष्य की किसी तारीख को उसी जिंस के भाव होते हैं। जैसे,औरऔर भी

बाजार आज थोड़ा दबकर बंद हुआ। हालांकि मेरा अंदाज था कि एनएवी के चक्कर में खरीद ज्यादा होगी। मुझे लगता है कि ज्यादातर फंड मैनेजर अपने कामकाज व उपलब्धि से खुश हैं और आखिरी वक्त पर उन्हें एनएवी की खास पड़ी नहीं है। असल में यह वित्तीय साल म्यूचुअल फंडों के लिए जबरदस्त रहा है। वैसे, स्मॉल व मिड कैप शेयरों में सक्रियता बनी रही। फंडिंग की रुकावट दूर हो चुकी है और नई खरीद होने लगीऔरऔर भी

आप शेयरों या म्यूचुअल फंड में निवेश करने के 365 दिन या साल भर बाद उसे बेचकर जो भी कमाई करते हैं, उस पर कोई टैक्स नहीं लगता। एक तो साल भर के बाद इस निवेश को लांग टर्म माना जाता है और लांग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स की दर इस समय ज़ीरो है। दूसरे इससे जो भी लाभ होगा, उस पर आप सिक्यूरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स दे चुके होते हैं। फिर आप ने यह धन जोखिम उठाकरऔरऔर भी

हम भारतीय किसी भी तरह के ऋण से फौरन बरी होना चाहते हैं। यह हमारी परंपरागत नैतिकता का हिस्सा है। भारतीय संस्कृति में माना जाता है कि हर व्यक्ति पर कुछ न कुछ ऋण होते हैं। जैसे, मातृ ऋण, पितृ ऋण, गुरु ऋण। इसी तरह महात्मा गांधी का मानना था कि हर व्यक्ति पर समाज का ऋण भी होता है। हमारे जीवन में जो भी सुख-सुविधाएं, उपलब्धियां, यश, प्रतिष्ठा हमें मिलती है, उन सबके लिए हमारे अलावाऔरऔर भी

अगर आप सोने का डीमैट कारोबार करना चाहते हैं, लेकिन आपके पास ज्यादा रकम नहीं है तो मायूस न हों। अब छोटे निवेशकों का ध्यान रखते हुए 1, 2 और 3 ग्राम सोने का डीमैट कारोबार भी शुरू हो गया है। फाइनेंशियल टेक्नोलॉजीज इंडिया लिमिटेड और नैफेड द्वारा प्रवर्तित नेशनल स्पॉट एक्सचेंज (एनएसईएल) ने इसकी शुरुआत की है। दरअसल कीमत अधिक होने के कारण छोटे निवेशक सोने को अपने पोर्टफोलियो में शामिल नहीं कर पाते हैं। इसीऔरऔर भी

पहले कहां कौन बीमा कराता था? ऐसा नहीं कि तब अनिश्चितता का भय नहीं था, अनहोनी की आशंका नहीं थी। लेकिन लोग भगवान के आगे माथा नवाकर निश्चिंत हो जाते थे। भगवान तू ही सबका रखवाला है, रक्षा करना- इतना भर कह देने से लगता था कि आपको किसी भी आकस्मिक आफत से निपटने का सहारा मिल गया। फिर, अपने यहां एक-दो नहीं, 33 कोटि देवता हैं। गांव से बाहर निकलिए तो ग्राम देवता को प्रणाम करऔरऔर भी

मिहिर शर्मा एक नौकरीपेशा शख्स हैं। कुछ साल पहले तक महीने की तनख्वाह 35 हजार रुपये थी। अब यही कोई 65 हजार पाते हैं। पहले कैश सेगमेंट में सीधे कंपनी के शेयर खरीदते थे, डिलीवरी लेते थे। मौका पाने पर बेचकर हजार-दो हजार की कमाई कर लेते थे। जनवरी 2008 के बाद अपने ढाई लाख के निवेश पर करीब डेढ़ लाख का घाटा खाने के बाद उन्होंने रणनीति बदल दी है। अब वे सीधे कंपनी के शेयरोंऔरऔर भी

जगन्नाधम तुनगुंटला अंग्रेजी में एक वाक्य चलता है कि देयर इज नो ऑल्टरनेटिव यानी टीआईएनओ जिसे लोग टिना कहने लगे हैं। इस समय दुनिया में अमेरिका का वर्चस्व खत्म हो रहा है। लेकिन चूंकि कोई विकल्प नहीं है, इसलिए अमेरिका को सिर पर बैठाए रखने की मजबूरी है। साल 2008 में कंपनियां दीवालियां हुईं। अब देश डिफॉल्ट करने लगे हैं। सिलसिला आइसलैंड से शुरू हुआ, फिर दुबई से होता हुआ ग्रीस जा पहुंचा। फिर पुर्तगाल, आइसलैंड, ग्रीसऔरऔर भी

संजय तिवारी आर्थिक मसलों पर काम करते समय भारत में मुख्य रूप से दो तरह की मानसिकता काम करती है। एक, वणिक मानसिकता और दूसरी किसान मानसिकता। उधार, लेन-देन और पूंजी से पूंजी का खेल वणिक मानसिकता है। लेकिन यह भी कोई स्वच्छंद व्यवस्था नहीं होती। इसका बाजार से ज्यादा सामाजिक सरोकारों से लेना-देना होता है। जिस भारतीय बैंकिग प्रणाली को आज हमारे वित्तीय प्रबंधक एक मजबूत व्यवस्था घोषित कर रहे हैं उसके मूल में यही सोचऔरऔर भी

इला पटनायक मुद्रास्फीति का बढ़कर दहाई अंक में पहुंच जाना चिंता का मसला है। थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) पर आधारित यह दर अगले कुछ हफ्तों तक और बढ़ेगी। लेकिन उसके बाद यह घटेगी। हमारे नीति-नियामकों को ब्याज दर बढ़ाने से पहले यह बात ध्यान में रखनी चाहिए। वैसे रिजर्व बैंक के नीतिगत उपाय अभी तक कमोबेश दुरुस्त ही रहे हैं। मुद्रास्फीति इसलिए भी चिंता का मसला है क्योंकि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) बढ़ रहा है। महीने सेऔरऔर भी