अतीत के रिटर्न और प्रदर्शन से कतई गारंटी नहीं होती कि कंपनी भविष्य में भी वैसी ही उपलब्धि हासिल कर लेगी। शेयर बाज़ार में निवेश का यह प्रमुख रिस्क है। लेकिन अगर अच्छी तरह परख लें कि कंपनी प्रबंधन ने प्रतिकूल हालात से कैसे निपटा और वह आज की ज़मीन पर मजबूती से डटकर कल को साधने की कला में कितना सिद्धहस्त है तो यह काफी रिस्क घट जाता है। तथास्तु में आज ऐसी ही एक कंपनी…औरऔर भी

काश! कुछ ऐसा मिल जाता है जिसमें पक्की कमाई हो जाती। उसने तो इतना बना लिया और मैं पीछे छूट गया। जितना मिला ठीक, पर और ज्यादा मिले। कहीं मौका हाथ से निकल न जाए। निवेशकों के मन में ऐसे विचार अमूमन आते हैं। इन सब का असर बाज़ार पर भी पड़ता है। लेकिन निजी स्तर पर इसका खामियाज़ा हम एक बार नहीं, बार-बार गलतियों के रूप में भुगतते हैं। अब तथास्तु में आज की उभरती कंपनी…औरऔर भी

निवेश को सार्थक व सफल बनाने की राह में हमारी छह वृत्तियां या भावनाएं घातक साबित होती हैं। डर, लालच, भीड़ की भेड़चाल से बचने के बजाय उसी का अनुसरण, तर्क को ताक पर रखना, ईर्ष्या और अहंकार। हमारे भीतर अहंकार इतना भरा होता है कि मानने को तैयार ही नहीं होते कि हमसे गलती हो सकती है। लेकिन आत्मविश्वास इतना कम कि हमेशा भीड़ या औरों की तरफ देखते हैं। अब तथास्तु में आज की कंपनी…औरऔर भी

निवेश का मतलब बाज़ार या किसी दूसरे को हराकर आगे बढ़ना नहीं है। इसका सीधा-सा मतलब है कि अपने को जीतना, अपनी नकारात्मक वृत्तियों पर विजय हासिल करना। जब हम अपने पर विजय हासिल कर लेते हैं और संपूर्ण इंसान बन जाते हैं, तभी हम सच्चे अर्थों में निवेशक बन पाते हैं। तब हम वर्तमान के यथार्थ धरातल पर खड़े होकर सारे रिस्क को समझते हुए भविष्य की योजना बनाते हैं। अब तथास्तु में आज की कंपनी…औरऔर भी

अगर मैं कहूं कि दस साल में बीएसई सेंसेक्स अभी के 34,924.87 अंक से बढ़ते-बढ़ते 1,00,000 पर पहुंच जाएगा तो आप कहेंगे कि लंबी फेंक रहा है। लेकिन कहूं कि सेंसेक्स की इस बढ़त में सालाना चक्रवृद्धि रिटर्न की दर मात्र 11.09% बनती है तो बोलेंगे कि यह तो कोई ज्यादा नहीं। जी हां, बचत से दौलत बनाने की राह में चक्रवृद्धि दर की महिमा को समझना बहुत ज़रूरी है। अब तथास्तु में आज की संभावनामय कंपनी…औरऔर भी

झूठ ज्यादा नहीं चलता। देर-सबेर उसका बेड़ा गरक हो जाता है। यह नियम निजी जीवन से लेकर राजनीति और बिजनेस तक पर लागू होता है। सत्यम कंप्यूटर्स को उसका झूठ ही ले डूबा। दो साल पहले निर्यात पर निर्भर एक नामी कंपनी का धंधा इसलिए मार खा गया क्योंकि अमेरिकी ग्राहकों को पता चल गया कि वो झूठ बोलती है। सत्य ही अंततः जीतता और चलता है। अब तथास्तु में सच के दम पर खड़ी एक कंपनी…औरऔर भी

अक्टूबर 2007 में चार लाख रुपए से बनाई गई कंपनी फ्लिपकार्ट का मूल्यांकन दस साल बाद 2000 करोड़ डॉलर (करीब 1.35 लाख करोड़ रुपए) हो जाता है, वो भी तब उसका पिछले साल उसका घाटा 68% बढ़कर 8771 करोड़ रुपए हो गया था। यह है नए बिजनेस में छिपी संभावना और उसके मूल्यांकन का एक दृष्टांत। पर, कुछ पुराने बिजनेस हैं जिनका दम हमेशा बना रहता है। आज तथास्तु में सौ साल से ज्यादा पुरानी कंपनी…और भीऔर भी

सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार की कीमत सरकारी कंपनियों को चुकानी पड़ती है। वरना, ऐसा मानने की कोई वजह नहीं कि निजी कंपनियां प्रबंधन के लिहाज़ से बेहतर होती हैं। बल्कि, सरकारी कंपनियां ज्यादा प्रोफेशनल तरीके से चलाई जा सकती हैं। शिक्षा व स्वास्थ्य ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें सरकार को रहना ही चाहिए। कुछ और भी क्षेत्र हैं जहां सरकार की अहम भूमिका है और आगे भी बनी रहेगी। तथास्तु में आज ऐसे ही एक क्षेत्र की कंपनी…औरऔर भी

कंपनियां यूं ही अचानक नहीं डूब जातीं। उनके डूबने का एक अहम कारण है ऋण। कंपनी ऋण के भारी बोझ से दबी है और उसका परिचालन लाभ तय देय ब्याज के दो-तीन गुना से ज्यादा नहीं है तो वह डूब सकती है। इसलिए हमें कभी भी एक गुने से ज्यादा ऋण-इक्विटी अनुपात वाली कंपनी में निवेश नहीं करना चाहिए। साथ ही उसका धंधा अगले 15-20 सालों तक प्रासंगिक बने रहना चाहिए। अब तथास्तु में एक शानदार कंपनी…औरऔर भी

लंबे समय का निवेश भविष्य में फल देता है। पर भविष्य किसी ने नहीं देखा। मुमकिन है कि अभी टनाटन चल रही कंपनी चार-पांच साल बाद बैठ जाए और अपने साथ हमारा धन भी डुबा डाले। यही आशंका शेयर बाज़ार में निवेश का रिस्क है। एफडी में अमूमन मूलधन पर तय ब्याज मिलता रहेगा। लेकिन शेयर बाज़ार में पूरा का पूरा निवेश डूब सकता है। इसलिए इसमें इफरात धन ही लगाएं। अब तथास्तु में एक नई कंपनी…औरऔर भी