कोई भी फर्क मामूली नहीं। ज़रा-सा फर्क मूल प्रकृति बदल देता है। कोशिका के 46 में से एक क्रोमोज़ोम के अंतर से पुरुष स्त्री बन जाता है। इसलिए बारीक अंतरों को कतई नज़रअंदाज नहीं करना चाहिए।और भीऔर भी

हमारे अंदर-बाहर हर वक्त जड़ता व गतिशीलता के बीच संघर्ष चलता रहता है। लड़कर खड़े नहीं हुए तो जड़ता खींचकर बैठा देती है। भ्रम और पूर्वाग्रह जड़ता के सहचर हैं, जबकि ज्ञान-विज्ञान गतिशीलता के।और भीऔर भी

रेत में सिर डालकर शुतुरमुर्ग की तरह जीने व शिकार हो जाने का क्या फायदा! इस दुनिया में अनगिनत शक्तियां सक्रिय हैं। यहां ‘एक मैं और दूजा कोई नहीं’ की सोच नहीं चलती। यह सरासर गलत है।और भीऔर भी

हमें हर काम को रूटीन नहीं, एकदम नया समझकर करना चाहिए ताकि दिमाग पूरी तरह उसमें रम जाए। यह नहीं कि यंत्रवत साइकिल चलाए जा रहे हैं और दिमाग का सचेत हिस्सा सोया पड़ा हुआ है।और भीऔर भी

विचारों को बाहर से ट्रांसप्लांट नहीं किया जा सकता है। उसी तरह, जैसे हम किसी पौधे में ऊपर से फूल नहीं टांक सकते। फूल तो पौधे की जटिल संरचना के भीतर से ही निकलते हैं, कहीं से टपकते नहीं।और भीऔर भी

लोकतंत्र कोई धर्म या पंथ नहीं, जहां सब कुछ आस्था व भावना से तय होता है। यहां अगर कोई भावनाओं को भड़का कर आपको लुभाता है तो समझ लेना चाहिए कि उसकी नीयत में कोई गहरा खोट है।और भीऔर भी

सामाजिक मामलों में गांधारी बना पढ़ा-लिखा शातिर इंसान कामयाब नौकरशाह बनता है। वहीं सामाजिक मामलों में पांचाली बना कढ़ा हुआ शातिर इंसान राजनेता बनता है। यही दोनों की पेशागत श्रेष्ठता है।और भीऔर भी

काम अपने लिए करने जाते हैं, पर करना दूसरों के लिए पड़ता है तो धीरे-धीरे हम खुद ही निर्वासित हो जाते हैं। फिर जो है, उसे बचाने के चक्कर में निर्वासन खिंचता जाता है और ज़िंदगी ही चुक जाती है।और भीऔर भी

मनोरंजन का सच्चा साधन तो हमारे सपने हैं जिनका फलक बढ़ाते रहना जरूरी है। इसलिए जमकर जानो ताकि यथार्थ के हर पहलू को छू सको और जमकर सोओ ताकि सपने हर पहलू को नया विन्यास दे सकें।और भीऔर भी

दुर्भाग्य कहीं आसमान से नहीं टपकता। वह तो हमारे ही कर्मों का नतीजा होता है। हां, वह अपने साथ इतनी चासनी लेकर ज़रूर आता है कि कुछ सोचे-समझे बिना हम उसके स्वागत के लिए लपक पड़ते हैं।और भीऔर भी