दो-तीन दिसंबर 1984 की रात को भोपाल में यूनियन कार्बाइड फैक्टरी में जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट के रिसाव के कारण मरे करीब 20,000 लोगों और पीढी दर पीढ़ी विकलांगता झेलते कई लाख लोगों को आखिरकार ‘न्याय’ मिल गया। इसके लिए केशब महिंद्रा समेत आठ लोगों को दोषी ठहरा दिया गया है। इसमें से एक की मौत हो चुकी है। बाकी बचे साल लोगों को दो साल की सजा सुनाई गई है और इन पर एक-एक लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया है। साथ ही यूनियन कार्बाइड इंडिया, यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन (अमेरिका) और यूनियन कार्बाइड (ईस्टर्न) हांगकांग पर पांच-पांच लाख का जुर्माना लगाया गया है। लेकिन अमेरिकी कंपनी के तत्कालीन चेयरमैन वॉरेन एंडरसन के खिलाफ अदालत के फैसले में कुछ नहीं कहा गया है। उसे 2009 में ही किसी सुनवाई में न शामिल होने के कारण भगोड़ा घोषित किया जा चुका है।
जिन धाराओं के तहत सात व्यक्तियों को दोषी पाया गया है, उन सभी पर जमानत मिल सकती है। इसका फायदा उठाते हुए सभी दोषियों नो 25-25 हजार रुपए के निजी मुचलके पर जमानत ले ली है। केशब महिंद्रा अभी महिंद्रा एंड महिंद्रा समूह के चेयरमैन हैं, जबकि अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड का नाम अब डाउ केमिकल्स हो गया है। इस फैसले को कानून मंत्री वीरप्पा मोइली ने देर से आया फैसला बताया है, लेकिन उन्होंने सजा पर कोई टिप्पणी करने के इनकार कर दिया। पूर्व मुख्य न्यायाधीश और आज ही राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष बने के जी बालाकृष्णन के कहा है कि गैस पाड़ित कम सजा के खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील कर सकते हैं।
भोपाल के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी मोहन पी तिवारी ने सोमवार को आठ आरोपियों को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 304-ए, 304-II, 337 और 338 के तहत दोषी करार दिया। इन धाराओं का वास्ता लापरवाही से हुई मौत से है। दोषी लोगों में यूनियन कार्बाइड के तत्कालीन चेयरमैन केशब महिंद्रा के अलावा प्रबंध निदेशक विजय गोखले, उपाध्यक्ष किशोर कामदार, वर्क्स मैनेजर जे मुकुंद, प्रोडक्शन मैनेजर एस पी चौधरी, प्लांट सुपरिंटेंडेंट के वी शे्टटी और प्रोडक्शन इंचार्ज एस आई कुरैशी शामिल हैं। मामले की सुनवाई के दौरान ये सभी दोषी अदालत में मौजूद थे। दोषियों में असिस्टेंट वर्क्स मैनेजर आर बी रॉयचौधरी भी शामिल हैं, लेकिन उनकी मौत हो चुकी है।
गौरतलब है कि 1984 में हुई भोपाल गैस त्रासदी में कुल नौ लोगों को अभियुक्त बनाया गया था, जिनमें से मूल अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन के तत्कालीन चेयरमैनव सीईओ वॉरेन एंडरसन भी शामिल हैं। लेकिन सुनवाई में कभी भी न आने के कारण अदालत 2009 में उन्हें भगोड़ा घोषित कर चुकी है। आज के फैसले में एंडरसन के बारे में कुछ नहीं कहा गया है। यह बात भी नोट करने के काबिल है कि इस मामले की सुनवाई 23 साल चली है। आज का फैसला सुनाने वाले मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी मोहन पी तिवारी मामले की सुनवाई करने वाले 19वें न्यायाधीश हैं।
सीबीआई ने गैस त्रासदी के लगभग तीन साल बाद एक दिसंबर 1987 को मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के. ए. सिसोदिया की अदालत में चार्जशीट दाखिल की थी। सिसोदिया के बाद मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी आर. सी. मिश्रा ने इस मामले की सुनवाई 30 सितंबर 1988 से शुरू की। उनके बाद लाल सिंह भाटी की अदालत में इस मामले की सुनवाई 26 जुलाई 1989 से 27 नवंबर 1991 तक चली। मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी गुलाब शर्मा ने इस प्रकरण की सुनवाई के बाद मामले को 22 जून 1992 को सत्र न्यायालय को स्थानांतरित कर दिया और सत्र न्यायाधीश एस पी खरे ने 13 जुलाई 1992 से सुनवाई शुरु की।
सीबीआई ने 1987 में दाखिल अपनी चार्जशीट में यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन (अमेरिका), यूनियन कार्बाइड (इंडिया), यूनियन कार्बाइड (ईस्टर्न) हांगकांग, वॉरेन एंडरसन व अन्य आठ भारतीय अधिकारियों को आरोपी बनाया था। इसमें से अमेरिका या हांगकांग की यूनियन कार्बाइड का कोई भी अधिकारी 23 साल तक चली सुनवाई के दौरान कभी भी भारतीय अदालत में पेश नहीं हुआ। सुनवाई के दौरान ही सरकार ने पीड़ितों को विश्वास में लिए बगैर आरोपियों से आपराधिक आरोप हटा दिए। साथ ही 1996 में सुप्रीम कोर्ट ने आरोपों को आईपीसी की धारा 304-ए और 304 (II) तक सीमित कर दिया।
भोपाल गैस काण्ड!!
आप अचम्भित क्यों हो रहे हो? यह तो सनातन सत्य है। न्याय के तीन सिद्धाँत आप जानते नही क्या?
ताकतवर के खिलाफ कमजोर लड़े तो सदा हारता है, अदालत के बाहर या भीतर क्या फर्क पड़ता है?
कमजोर के खिलाफ ताकतवर लड़े तो सदा जीतता है, अदालत के बाहर या भीतर क्या फर्क पड़ता है?
ताकतवर के खिलाफ ताकतवर लड़े तो सदा न्याय होता है, अदालत के बाहर या भीतर क्या फर्क पड़ता है?
कमजोर के खिलाफ कमजोर लड़े तो सदा न्याय होता है, अदालत के बाहर या भीतर क्या फर्क पड़ता है?