बैंक चमकदार, आमजन ज्यादा कर्जदार

अजीब-सा दुष्चक्र है। उधर, बैंक खासकर सरकारी बैंक आम लोगों की बचत से कॉरपोरेट क्षेत्र को दिए गए ऋण राइट-ऑफ करके बट्टेखाते में डाल रहे हैं। इधर आम लोगों को अपना खर्च पूरा करने के लिए जहां-तहां से उधार लेना पड़ रहा है। घटती आमदनी और बचत के बीच उनकी देनदारियां बढ़ती जा रही हैं। रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, वित्त वर्ष 2021-22 में देश के आम परिवारों पर कुल 9 लाख करोड़ रुपए का ऋण थां। यह बोझ साल भर बाद ही 2022-23 में 76% बढ़कर 15.8 लाख करोड़ रुपए हो गया। ये ऋण आम लोगों ने बैंकों, गैर-बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों (एनबीएफसी), हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों और अन्य स्रोतों से ले रखे हैं। इनमें से बैंकों से लिया गया ऋण साल भर में 7.76 लाख करोड़ से बढ़कर 12.16 लाख करोड़ और एनबीएफसी से ली गई उधारी 21,432 करोड़ रुपए से उछलकर 2.39 लाख करोड़ रुपए हो गई। आम लोगों का इतने कम समय में इतना ज्यादा ऋणग्रस्त हो जाना समूची अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर चितां की बात है। जब आम परिवार खर्च चलाने के लिए कर्ज ले रहे हैं तो उस हाउसहोल्ड बचत का क्या होगा जो अर्थव्यवस्था के लिए संजीवनी का काम करती है? इससे विदेशी पूंजी पर हमारी निर्भरता बढ़ जाएगी। अब गुरुवार की दशा-दिशा…

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