भारत सरकार के कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय ने निवेशकों को खींचने के लिए देश में व्यापक अभियान चला रखा है। इसके तहत उसने 12-17 जुलाई तक एक निवेशक सप्ताह भी मनाया। इसी दौरान उसने छोटी-सी पुस्तिका छपवाई है जिसका शीर्षक है – ए बिगिनर्स गाइड टू द कैपिटल मार्केट। इसमें बहुत सारी बातों के अलावा निवेश के बीस मंत्र सुझाए गए हैं, जिसमें से चौथा मंत्र आईपीओ (शुरुआती पब्लिक ऑफर) में निवेश को लेकर है, जिसे जानकर किसी भी गंभीर निवेशक या बाजार के जानकार का माथा चकरा सकता है।
इसमें दी गई सरकारी सलाह का सार यह है कि आईपीओ के लिस्ट होते ही उसे बेचकर मुनाफा कमा लेना चाहिए। आइए देखते हैं कि इसमें ठीकठाक क्या कहा गया है, “तय करें कि आप आईपीओ में निवेश कर रहे हैं या कंपनी में। अगर आईपीओ में तो लिस्टिंग के दिन उससे (बेचकर) बाहर निकलें। अगर कंपनी में तो किसी अन्य लिस्टेड स्टॉक की तरह उसमें बने रहें।” यह आम निवेशक के लिए परेशानी की बात है क्योंकि वह तो आईपीओ में लंबे समय के लिए ही अपनी बचत डालता है।
यह सवाल भी उठता है कि क्या किसी आईपीओ को कंपनी से अलग करके देखा जा सकता है या देखा जाना चाहिए? पुस्तिका समझाती है, “समस्या यह है कि हम आईपीओ को एक (ऊंचे) पायदान पर बैठा देते हैं और उम्मीद करते हैं कि वे हमेशा परफॉर्म (अच्छी बढ़त हासिल) करेंगे। कोई भी आईपीओ लिस्टिंग की तारीख पर लिस्टेड स्टॉक बन जाता है। इसके बाद वह उसी तरीके से काम करेगा।”
यह भी ‘दिलचस्प’ सलाह है कि निवेशकों को किसी आईपीओ में केवल तभी निवेश करना चाहिए जब उसका क्यूआईबी (क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल खरीदार) का हिस्सा अच्छी तरह ओवरसब्सक्राइब हो गया हो। बाजार से जरा-सा भी परिचय रखनेवाला व्यक्ति जानता है कि क्यूआईबी हिस्सा खरीदा नहीं बेचा जाता है। इश्यू के पहले कंपनी के प्रवर्तक नियुक्त मर्चेंट बैंकर के साथ मिलकर क्यूआईबी यानी बड़ी निवेशक संस्थाओं को पकड़ते हैं, उन्हें हर ‘तरीके’ से आश्वस्त करते हैं। यही वजह है कि आईपीओ के खुलने के पहले ही दिन क्यूआईबी हिस्सा पूरा सब्सक्राइब हो जाता है।
अब आईपीओ पर सरकारी सलाह का तुरुप का पत्ता। चौथे मंत्र का शुरुआती वाक्य कहता है, “तेजी के दौर में तकरीबन सभी आईपीओ लिस्टिंग के दिन धनात्मक, बहुत से मामलों में तो भारी रिटर्न देते हैं। अगर कोई निवेशक (तब) पॉफिट बुक नहीं करता तो या तो वह लालची है या कंपनी/उद्योग/बाजार को लेकर गलत सोच (सलाह) का शिकार हो गया है। तब उसे आईपीओ के मूल्य को दोष नहीं देना चाहिए। याद रखें…।” लेकिन यह लिखते हुए शायद सलाह देनेवाले ने खुद याद नहीं रखा कि वह किस जमाने की बात कर रहा है। पिछले दो साल से तो ज्यादातर आईपीओ इश्यू मूल्य से कम भाव लिस्ट हो रहे हैं। खासकर सरकारी कंपनियों के आईपीओ जिनके बारे में पुस्तिका का कहना है कि इनमें जरूर निवेश करना चाहिए।
इस पुस्तिका के संपादक पूंजी बाजार, खासकर प्राइमरी बाजार से जुड़ी काफी पुरानी संस्था प्राइम डाटाबेस के प्रबंध निदेशक पृथ्वी हल्दिया हैं। कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय कह सकता है कि निवेश के 20 मंत्र संपादक ने दिए हैं। लेकिन मंत्रालय जब इन्हें अपनी पुस्तिका में छाप रहा है तो उसे इसके एक-एक शब्द की जिम्मेदारी लेनी पड़ेगी। कोई भी पुस्तिका में आईपीओ के बारे में दी गई सलाह को पृथ्वी हल्दिया की नहीं, सरकारी मंत्रालय की सलाह मानेगा। इसीलिए उसे इस पर सफाई देनी ही चाहिए या कहना चाहिए कि वह दी गई सलाह से अक्षरशः सहमत है।
वैसे, इस पुस्तिका के बारे में कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय, भारत सरकार के सचिव आर बंद्योपाध्याय का कहना है, “मंत्रालय के निवेशक शिक्षा व जागरूकता कार्यक्रम को जन आंदोलन में बदलने के लिए तय किया गया है कि हम इस पहल को बढाएंगे और इस क्षेत्र के तमाम संगठनों को भागीदार बनाएंगे। निवेशको को समझने में आसान तरीके से शिक्षित करने के लिए यह किताब निकाली गई है। इससे कॉरपोरेट इकोनॉमी में आम आदमी की भादीगारी को प्रोत्साहित करने में मदद मिलेगी।”
मंत्रालय ने इस पुस्तिका को हिंदी समेत तमाम भारतीय भाषाओं में भी लाने का वादा किया था। इस वादे का अंजाम तो नहीं पता, लेकिन मंत्रालय ने निवेशक शिक्षा की अभी तक की सामग्रियों में जिस तरह की हिंदी इस्तेमाल की है, किसी भी हिंदीभाषी के लिए उसे समझने से कहीं ज्यादा आसान है अंग्रेजी सीख लेना। हां, मंत्रालय की पुस्तिका में कई अच्छी बातें भी हैं, जिन्हें हम ब्योरेवार तरीके से अर्थकाम पर समझ में आ सकनेवाली हिंदी में पेश करेंगे।