दुर्भाग्य कहीं आसमान से नहीं टपकता। वह तो हमारे ही कर्मों का नतीजा होता है। हां, वह अपने साथ इतनी चासनी लेकर ज़रूर आता है कि कुछ सोचे-समझे बिना हम उसके स्वागत के लिए लपक पड़ते हैं।
2012-01-25
दुर्भाग्य कहीं आसमान से नहीं टपकता। वह तो हमारे ही कर्मों का नतीजा होता है। हां, वह अपने साथ इतनी चासनी लेकर ज़रूर आता है कि कुछ सोचे-समझे बिना हम उसके स्वागत के लिए लपक पड़ते हैं।
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