प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आगाह किया है कि भ्रष्टाचार को बर्दाश्त करने का जनता के सब्र का बांध अब टूट चुका है। उन्होंने कहा कि सरकार इस दुराचार की चुनौती से सख्ती से निपटने को प्रतिबद्ध है क्योंकि जनता इसके खिलाफ तुरत और कठोर कार्रवाई चाहती है।
गुरुवार को उन्होंने कहा कि सरकार की तरफ से संसद के मानसून सत्र में भ्रष्टाचार की नकेल कसने के लिए चर्चित लोकपाल विधेयक पेश कर दिए जाने की उम्मीद है। विख्यात समाज सेवी अण्णा हजारे के आमरण अनशन के बाद इस विधेयक का मसौदा तैयार करने के लिए सिविल सोसायटी और सरकार के पांच-पांच सदस्यों वाली एक सयुंक्त समिति गठित की गई है।
प्रधानमंत्री ने राजधानी दिल्ली में विज्ञान भवन में आयोजित ‘सिविल सर्विस डे’ के अवसर पर अपने उद्घाटन भाषण में कहा, ‘‘हम इस बात को पहचानें कि जनता अब भ्रष्टाचार के मौजूदा मौहाल को कतई बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है। जनता इसके खिलाफ फौरी और सख्त कार्रवाई चाहती है और उसकी यह इच्छा सही है।’’ उन्होंने भ्रष्टाचार को बड़ी चुनौती बताते हुए कहा हमें ‘निडरता’ से इसका मुकाबला करना है। सिंह ने सभागार में बड़े पैमाने पर मौजूद भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों से कहा, ‘‘मैं आपसे उम्मीद करता हूं कि अपने उच्च अधिकारियों, खासतौर पर राजनीतिक नेतृत्व को आप ईमानदार और बेखौफ सलाह देंगे।’’
इसी समारोह में प्रधानमंत्री ने स्वीकार किया कि मुद्रास्फीति का लगातार लम्बे समय तक ऊंचा बने रहना अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का विषय है। उन्होंने खाद्य सुरक्षा की स्थिति सुदृढ़ बनाने के लिए देश में कृषि उत्पादन को बढ़ाने पर जोर दिया है। मनमोहन सिंह ने कहा कि हमें अपनी खाद्य सुरक्षा मजबूत करने के लिए ठोस प्रयास करते होंगे। हमारी अर्थव्यवस्था पिछले सात वषरे में अच्छी हालत में रही है। हमने आकर्षक वृद्धि दर हासिल की है। हम इसे हाल में उत्पन्न सबसे गंभीर वैश्विक वित्तीय संकट के दिनों में भी बरकरार रखने में सफल रहे।
उन्होंने कहा कि फिर भी पिछले डेढ़ सालों से सतत मुद्रास्फीति विशेषकर खाद्य क्षेत्र की मुद्रास्फीति चिंता का विषय बनी है। सरकार की नीति विकास को बगैर प्रभावित किए मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने की रही है। उन्होंने जोर दिया कि हमने इसे हासिल करने के लिए नाजुक और मुश्किल संतुलन कायम करने के प्रयास किए हैं। वर्ष 2009 में सूखे की स्थिति के बाद से खाद्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति तेजी की राह पर रही है क्योंकि सूखे के कारण कृषि उत्पादन प्रभावित हुआ था।