चाहे कर्जखोर सरकार घटता जाए ब्याज़!

हम प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और अन्य मंत्रियों के चेहरों पर जो चमक और आवाज़ में जो खनक देखते हैं, उसके पीछे हमारे टैक्स से ज्यादा उस ऋण का पोषण है जो हमारी संप्रभुता के दम पर लिया जाता है। जैसे, चालू वित्त वर्ष 2024-45 का बजट ₹48,20,512 करोड़ का है। इसका 33.5% या ₹16,13,312 करोड़ सरकार कर्ज से जुटा रही है। देश के खासो-आम से जुटाए गए ₹25,83,499 करोड़ के टैक्स के प्रति जवाबदेही बनती है। लेकिन सरकार जो कर्ज लेती है, उसके प्रति उसकी कोई जवाबदेही नहीं तो कर्ज पर कर्ज लेकर खर्च करती रहती है। इसका सबूत है कि बजट का लगभग एक-चौथाई हिस्सा (₹11,62,940 करोड़) तो उसे पुराने कर्ज के ब्याज पर चुकाना है। यह खर्च उसके ₹11,11,111 करोड़ के बहु-प्रचारित पूंजी व्यय से भी ज्यादा है। असल में सरकार इस समय देश की सबसे बड़ी कर्जदार है। इसलिए वो हमेशा रिजर्व बैंक से ब्याज दर घटवाने में लगी रहती है। उसके कर्ज का इंतज़ाम भी रिजर्व बैंक को करना होता है। सरकार के ऋण प्रबंधन के लिए स्वतंत्र एजेंसी बनाने की योजना पिछले साल ठंडे बस्ते में डाल दी गई। अभी देश का ऋण-जीडीपी अनुपात 83.06% है, जबकि इसे 2017 में बनाए गए नियम के तहत 60% से ज्यादा कभी नहीं होना चाहिए। अब गुरुवार की दशा-दिशा…

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