ऐसे हैं लाचार, सरकारी कृपा के मोहताज़

मोदी सरकार को दो काम बखूबी आते हैं। एक मीडिया व हेडलाइंस को मैनेज करते हुए जमकर हल्ला मचाना और दूसरा टैक्स बढ़ाना। उसने इन दोनों ही कामों को अभीष्टतम स्तर तक पहुंचा दिया है। बहुत सारा अनाप-शनाप सरकारी खर्च उसने जमकर बढ़ा दिया। लेकिन अर्थव्यवस्था के स्वस्थ व संतुलित विकास के लिए निजी निवेश, निजी खपत और निर्यात को भी बढ़ाना पड़ता है। सरकारी खर्च के रूप में अर्थव्यवस्था को बढ़ाने का केवल एक इंजिन चल रहा है। क्या ऐसा इसलिए क्योंकि सरकारी खर्च कमीशनखोरी का सबसे बड़ा जरिया होता है और इससे सत्ताधारी दल की मशीनरी की अच्छी ग्रीसिंग हो जाती है? अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के बाकी तीन इंजिन – निजी निवेश, निजी खपत और निर्यात अभी तक ठंडे पड़े हैं। जानकार कहते हैं कि इस समय भारत भले ही दुनिया की सबसे तेज़ गति से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था हो, लेकिन दरअसल यह उसका बसंत नहीं, पतझड़ काल चल रहा है। दिक्कत यह है कि सरकार इसे अमृतकाल कहती जा रही है। वह सच्चाई को स्वीकार करने को तैयार नहीं। लेकिन सच्चाई की मार करोड़ों बेरोजगारों से लेकर गांवों व शहरों के गरीबों को झेलनी पड़ रही है जो आज इतने लाचार हो गए हैं कि सरकारी कृपा के मोहताज़ हैं। अब गुरुवार की दशा-दिशा…

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