ऊपर-ऊपर दिख रही तेज़ी के बीच शेयर बाज़ार के अंदर ही अंदर अजीब सुस्ती घुस गई है। बाज़ार के बढ़ने का संवेग/मोमेंटम घट गया है। सुबह से शाम तक इंतज़ार करनेवाला इंट्रा-डे ट्रेडर ब्रोकरेज़ व अन्य खर्चों के बाद दुखी होकर घर लौटता है। यहां तक कि ऑप्शन बेचनेवाले धुरंधर फाइनेंसर भी मायूस हो चले हैं। वे कॉल और पुट ऑप्शन के प्रीमियम बड़ा हिसाब-किताब लगाकर तय करते हैं। लेकिन शाम तक दोनों ऑप्शंस के प्रीमियम सिकुड़ते जाते हैं। यह खासकर साप्ताहिक ऑप्शंस सौदों में हो रहा है और आजकल महीने नहीं, बल्कि साप्ताहिक ऑप्शंस सौदों की ही भरमार है। अब शुक्रवार का अभ्यास…
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