कंस्ट्रक्शन कंपनियों के शेयरों ने भले ही पिछले एक साल में निवेशकों को 55 फीसदी का नुकसान कराया हो, लेकिन अब वे ऐसे मुकाम पर आ गए हैं जहां इनमें किए गए निवेश पर 25 फीसदी या इससे ज्यादा भी रिटर्न मिल सकता है। यह कहा है प्रमुख रेटिंग एजेंसी से संबद्ध क्रिसिल रिसर्च ने अपनी ताजा रिपोर्ट में।
सोमवार को जारी इस रिपोर्ट में क्रिसिल रिसर्च ने खास तौर पर पांच कंस्ट्रक्शन कंपनियों का जिक्र किया है। ये हैं – एआरएसएस इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स, सी एंड सी कंस्ट्रक्शन, एरा इंफ्रा इंजीनियरिंग, मार्ग लिमिटेड और एमबीएल इंफ्रास्ट्रक्चर। इनमें से क्रिसिल रिसर्च ने एआरएसएस, मार्ग व एमबीएल को 5 में 5 का मूल्यांकन ग्रेड दिया है जिसका मतलब यह है कि इनके शेयरों में मौजूदा भाव से 25 फीसदी से ज्यादा बढ़त की संभावना है। बाकी सी एंड सी और एरा को 5 में से 4 का मूल्यांकन ग्रेड दिया गया है जिसका मतलब यह कि इनके शेयर मौजूदा स्तर से 10 से 25 फीसदी तक बढ़ सकते हैं।
किसिल रिसर्च का मानना है कि भारतीय कंस्ट्रक्शन कंपनियों का मूल्यांकन उनकी ऑर्डर-बुक की वजह से नहीं, बल्कि लाभार्जन की वजह से बढ़ेगा। अभी इनमें से ज्यादातर कंपनियों की ऑर्डर बुक अच्छी है। लेकिन प्रोजेक्ट को पूरा करने की अड़चनों, महंगी ब्याज दर और कार्यशील पूंजी की दिक्कतों के चलते उनका लाभार्जन दबा हुआ है। पिछले साल भर में कंस्ट्रक्शन कंपनियों के शेयर आम रुझान से काफी पीछे रहे हैं। जहां इस दौरान निफ्टी में 8 फीसदी गिरावट आई है, वहीं कंस्ट्रक्शन कंपनियों के शेयरों को 55 फीसदी की तगड़ी चपत लगी है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अब भी कंस्ट्रक्शन उद्योग समस्याओं से पूरी तरह उबरा नहीं है। लेकिन इनके स्टॉक्स का मौजूदा मूल्यांकन ऐतिहासिक रूप से न्यूनतम स्तर पर जा पहुंचा है। यहां पर जोखिम और फायदे का अनुपात इस क्षेत्र में निवेश के लिए माफिक हो गया है। असल में इस उद्योग ने वित्त वर्ष 2004-05 से 2007-08 के दौरान लाभार्जन में लगभग 60 फीसदी वृद्धि हासिल की। लेकिन इसके बाद 2008-09 से 2010-11 के दौरान यह बढ़त कमजोर मार्जिन व ऊंची ब्याज के चलते महज दो फीसदी तक सिमट गई। मगर अब चालू वित्त वर्ष 2011-12 की दूसरी तिमाही से हालात बेहतर होने के संकेत हैं।
क्रिसिल रिसर्च का कहना है कि इस समय कंस्ट्रक्शन कंपनियों के पास बीते वित्त वर्ष 2010-11 की कुल आय के ढाई गुना ऑर्डर हाथ में हैं। दूसरे, ब्याज दरों के बढ़ने का सिलसिला अब थमने जा रहा है। इसके अलावा अगर दीर्घकालिक रूप से देखें तो अगले पांच सालों में इफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च में काफा इजाफा होना है। क्रिसिल रिसर्च में उद्योग संबंधी प्रभाग के प्रमुख प्रसाद कोपारकर का कहना है, “इंफ्रास्ट्रक्चर की मौजूदा स्थिति जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में 9 फीसदी से ऊपर की महत्वाकांक्षी विकास दर हासिल करने के लक्ष्य की सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है। इसलिए इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च को बढ़ना ही है। हमें उम्मीद है कि कंस्ट्रक्शन में निवेश वित्त वर्ष 2011-12 से 2015-16 के बीच 13 फीसदी की सालाना चक्रवृद्धि दर से बढ़ता हुआ 14.8 लाख करोड़ रुपए से ऊपर पहुंच जाएगा।”
पहले 2005 से 2008 के दौरान कंस्ट्रक्शन कंपनियों का मूल्यांकन उनकी ऑर्डर-बुक के हिसाब से किया जाता था। लेकिन अब यह मूल्यांकन उनकी लाभप्रदता के हिसाब से होने लगा है। अभी ज्यादातर कंस्ट्रक्शन कंपनियों के शेयर एक साल बाद के अनुमानित ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) के संदर्भ में 6.5 के पी/ई अनुपात और साल भर बाद की बुक वैल्यू के आधे भाव पर ट्रेड हो रहे हैं। क्रिसिल रिसर्च में पूंजी बाजार के निदेशक तरुण भाटिया के मुताबिक अगले 12 महीनों में इन कंपनियों का मूल्यांकन सुधरेगा क्योंकि प्रोजेक्ट को लागू करने की समस्याओं समेत ब्याज दरों के बढ़ने का सिलसिला इस साल के अंत तक थम जाने की उम्मीद है।