सुप्रीम कोर्ट ने 1992 के प्रतिभूमि घोटाले में कस्टोडियन की तरफ से जारी उन अधिसूचनाओं को सही ठहराया है जिसमें इस घोटाले में हर्षद मेहता की मां रसिला मेहता और भाभी रीना मेहता को शामिल बताया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने 6 मई 2011 के आदेश में विशेष न्यायालय के आदेश के विरुद्ध उनकी अपील को रद्द कर दिया।
इससे कंस्टोडियन द्वारा जारी जनवरी 2007 की अधिसूचनाओं की पुष्टि हो गई है। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद उन बैंकों को अपना धन वापस मिलने की संभावना बढ़ गई है जिन्होंने हर्षद मेहता ग्रुप को 800 करोड़ से 1000 करोड़ रूपए तक का ऋण दिया था। ऋण की यह वापसी हर्षद की मां व भाभी के नाम में दर्ज संपत्तित की नीलामी से मिली रकम से की जाएगी।
बता दें कि वित्त मंत्रालय से संबद्ध कस्डोडियन (प्रतिभूतियों में लेन-देन से संबंधित अपराधों का परीक्षण) सतीश लुंबा ने इस साल मार्च में लगभग 2200 करोड़ रूपए आयकर विभाग और भारतीय स्टेट बैंक में बांट दिए थे। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय देने वाली पीठ में न्यायमूर्ति पी सतासिवम और न्यायभूर्ति बी एस चौहान शामिल थे।
इन्होंने अपने निर्णय में स्पष्ट न्यायिक अवधारणा का उल्लेख किया है कि प्रतिभूति घोटाले के वर्षों बाद कस्टोडियन द्वारा जारी अधिसूचनाएं प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ नहीं हैं। कस्टोडियन के तर्कों को स्वीकार करते हुए अदालत ने कहा कि उन्होंने जानकीरमन समिति, संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी), अंतर अनुशासनिक ग्रुप और चार्टर्ड एकाउंटेंट व अन्य विशेषज्ञों की रिपोर्टों के आधार पर कदम उठाया है।