सरकार लिस्टेड कंपनियों में आम निवेशकों की शिरकत व हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए बेचैन है। इस सिलसिले में वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने पिछले साल जुलाई में ही बजट पेश करते वक्त ऐसी कंपनियों में आम निवेशकों या पब्लिक की शेयरधारिता कम से कम 25 फीसदी रखने का प्रस्ताव रखा था। इस पर अमल की तैयारियां तेज हो गई हैं। वित्त मंत्रालय और कॉरपोरेट मामलात मंत्रालय के साथ के कानून मंत्रालय को भी हरकत में आना पड़ा है क्योंकि यह नया नियम होगा और इसके माफिक संशोधन सिक्यूरिटीज कांट्रैक्ट (रेगुलेशन) नियम, 1957 में करने पड़ेंगे। उम्मीद है कि नए नियम और दिशानिर्देश इसी अप्रैल माह के पहले-दूसरे हफ्ते में आ जाएंगे। इसके बाद वित्त मंत्रालय कॉरपोरेट मंत्रालय से बातचीत करके इसे लागू कर देगा। वैसे इसके लिए स्टॉक एक्सचेंजों के लिस्टिंग एग्रीमेंट में भी तब्दीली करनी होगी।
सरकार पूरे मामले के प्रति गंभीर है। इसलिए वह नहीं चाहती कि कंपनियों में पब्लिक शेयरहोल्डिंग के नाम पर कोई घालमेल बना रहे। अभी पब्लिक शेयरहोल्डिंग में म्यूचुअल फंडों से लेकर बीमा कंपनियों जैसी वित्तीय संस्थाओं का निवेश भी गिना जाता है। मोटे तौर पर स्थिति यह है कि कंपनी में प्रवर्तकों के अलावा बाकी सारी इक्विटी हिस्सेदारी पब्लिक की मान ली जाती है। नए नियमों में यह घालमेल खत्म किया जाएगा। यहां तक कि आईपीओ में कर्मचारी कोटे के तहत दिए गए शेयरों को प्रवर्तकों के खित्ते में शामिल माना जाएगा। सरकारी का तर्क है कि कर्मचारियों के पास कंपनी की अघोषित सूचनाएं रहती हैं। इसलिए उन्हें पब्लिक नहीं, प्रवर्तकों का हिस्सा माना जाना चाहिए। इम्प्लॉई स्टॉक ऑप्शन के तहत दिए गए शेयर भी प्रवर्तकों की हिस्सेदारी में गिने जा सकते हैं।
बता दें कि इस समय ज्यादातर लिस्टेड सरकारी कंपनियों में आम निवेशकों या पब्लिक की हिस्सेदारी 25 फीसदी से बहुत ज्यादा कम है। इसके अलावा हजार से ज्यादा निजी कंपनियां ऐसी हैं जिनमें पब्लिक का निवेश इस सीमा से काफी कम है। नए नियम के लागू होने से प्राइमरी बाजार में एफपीओ (फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर) की बाढ़ आ सकती है। एक और दिलचस्प बात यह है कि हाल ही में पूंजी बाजार नियामक संस्था सेबी ने कंपनियों को अपनी उन सभी सहयोगी इकाइयों के कर्मचारियों को भी आईपीओ या एफपीओ के कर्मचारी कोटे में शामिल करने की इजाजत दे दी है जिनका कामकाज वे अपने कंसोलिडेटेड नतीजों में पेश करती है।