बाहर से सब कुछ भरा-पूरा, अंदर से परेशान। सदियों पहले एक राजकुमार इसी उलझन को सुलझाने निकला तो बुद्ध बन गया। नया दर्शन चल पड़ा। सदियों बाद लाखों लोग सब कुछ होते हुए भी वैसे ही बेचैन हैं। लेकिन कोई बुद्ध नहीं बनता। आखिर क्यों?
2012-09-01
बाहर से सब कुछ भरा-पूरा, अंदर से परेशान। सदियों पहले एक राजकुमार इसी उलझन को सुलझाने निकला तो बुद्ध बन गया। नया दर्शन चल पड़ा। सदियों बाद लाखों लोग सब कुछ होते हुए भी वैसे ही बेचैन हैं। लेकिन कोई बुद्ध नहीं बनता। आखिर क्यों?
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