बूंद हैं, कड़ियां हैं

न तुम अंतिम हो, न वह और न ही मैं। हम सब बूंद हैं, कड़ियां हैं अनंत सागर की। यहां कुछ भी सपाट नहीं, सब गोल है। चलते-चलते आखिरकार हम वहीं पहुंच जाते हैं, जहां से यात्रा की शुरुआत की थी।

1 Comment

  1. kya ho gaya. yah to antim samay ke parvachan hai.

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