शुक्रवार को जब दुनिया भर के तमाम बाजारों के सूचकांक धांय-धांय गिर रहे थे, बीएसई सेंसेक्स 3.97 फीसदी और एनएसई निफ्टी 4.04 फीसदी गिर गया था, तब भारतीय शेयर बाजार का एक सूचकांक ऐसा था जो कुलांचे मारकर दहाड़ रहा है। यह सूचकांक है एनएसई का इंडिया वीआईएक्स जो यह नापता है कि बाजार की सांस कितनी तेजी से चढ़ी-उतरी, बाजार कितना बेचैन रहा, कितना वोलैटाइल रहा।
जी हां, अमेरिका के एक और आर्थिक संकट से घिर जाने की आशंका ने शुक्रवार को भारतीय शेयर बाजार की चूलें हिलाकर रख दीं। इस झंझावात को दर्शानेवाला सूचकांक इंडिया वीआईएक्स 23.15 फीसदी बढ़कर बंद हुआ है। यह सूचकांक गुरुवार को 20.22 पर बंद हुआ था। शुक्रवार को कारोबार के दौरान 30.56 फीसदी बढ़कर 26.4 अंक तक चला गया। कारोबार की समाप्ति पर यह 24.90 अंक रहा है जो 23.15 फीसदी की बढ़त दर्शाता है।
विश्लेषकों का कहना है कि यह अक्टूबर 2008 में लेहमान संकट के बाद वोलैटिलिटी इंडेक्स में आया सबसे बड़ा इंट्रा-डे उछाल है। जियोजित बीएपी परिबास फाइनेंशियल सर्विसेज के रिसर्च प्रमुख अलेक्स मैथ्यू का कहना है, “वोलैटिलिटी सूचकांक असल में डर को मापता है और यह साफ तौर पर दिखा रहा है कि बाजार में किस कदर अनिश्चितता छाई हुई है। दरअसल ट्रेडर भयंकर उहापोह में हैं। उन्हें इतनी जबरदस्त बिकवाली की कतई अपेक्षा नहीं थी।”
भारतीय शेयर बाजार शुक्रवार को जून 2010 के बाद से सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया। 14 महीने की इस सबसे बडी गिरावट ने एक झटके में निवेशकों के 1.33 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा स्वाहा कर दिए हैं। इसकी खास वजह थी यह चिंता कि विश्व अर्थव्यवस्था फिर मंदी की गिरफ्त में जा रही है। गुरुवार को डाउ जोंस के 512 अंक टूटने के बाद यूरोप से लेकर एशिया तक के बाजार गिरे हुए थे तो उसकी धमक भारतीय बाजार को लगनी ही थी क्योंकि ग्लोबीकरण के साथ यह छूत का रोग भी मुफ्त में मिल जाता है।
स्टॉक एक्सचेंजों के अनंतिम आंकड़ों के अनुसार शुक्रवार, 5 अगस्त को विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने 1788.96 करोड़ रुपए की शुद्ध बिकवाली की। इसके विपरीत घरेलू निवेशक संस्थाओं (डीआईआई) 1372.49 करोड़ रुपए की शुद्ध खरीद की। इनकी खरीद का समर्थन न मिला होता तो बाजार न जाने कहां चला गया होता। इस महीने अब तक के पांच दिनों में एफआईआई ने शुद्ध रूप से 3028.05 करोड़ रुपए की बिकवाली की है, जबकि डीआईआई ने शुद्ध रूप से 2156.08 करोड़ रुपए की खरीद की है। यह तो कैश बाजार का हाल है। डेरिवेटिव का पूरा खेल तो ठीक से सामने ही नहीं आता, जबकि बाजार को नचाने का असली खेल वहीं से होता है।
दिन में सेंसेक्स एक बार 702.27 अंक गिरकर 16,990.91 पर और निफ्टी 215.45 अंक गिरकर 5116.45 तक चला गया था। बाद में थोड़ा सुधर कर सेंसेक्स 387.31 अंक (2.19 फीसदी) नीचे 17,305.87 पर और निफ्टी 120.55 अंक (2.26 फीसदी) नीचे 5211.25 पर बंद हुआ। दिन भर एक तरह के चक्रवात के जूझता रहा बाजार। एफआईआई बेचते रहे और भारतीय कारोबारी देखते रहे। डीआईआई की खरीद भी गिरावट को संभाल न सकी।
इस दौरान यूरोप में भी निवेशकों के डर को दर्शानेवाला वोलैटिलिटी सूचकांक 14 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है। कारण यही है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था एक और मंदी की तरफ बढ़ रही है, जबकि यूरोप का ऋण संकट इटली व स्पेन को भी गिरफ्त में ले सकता है। क्रेडिट सुइस ने अमेरिका में कॉरपोरेट क्षेत्र के प्रति शेयर लाभ में वृद्धि का अनुमान 2011 में 12 फीसदी और 2012 में 6 फीसदी कर दिया है। पहले यह अनुमान क्रमशः 14 व 9 फीसदी का था। इसी तरह यूरो ज़ोन में अगले दो सालों के कॉरपोरेट लाभार्जन में वृद्धि का अनुमान उसने क्रमशः 12 व 9 फीसदी से घटाकर 7 व 6 फीसदी कर दिया है।
ब्रोकर फर्म शेयरखान के डेरिवेटिव विश्लेषक नंदीश पटेल का कहना है कि बाजार में अंतर्निहित व्यग्रता खत्म नहीं हो रही है जिसका मतलब है कि मौजूदा नकारात्मक रुख आगे भी जारी रह सकता है। यह अफरातफरी में की जा रही है बिकवाली है। इसलिए निफ्टी में अच्छे समर्थन स्तर का अनुमान लगाना बेहद मुश्किल है।
एक अन्य ब्रोकिंग फर्म एसएमसी ग्लोबल के डेरिवेटिव रिसर्च प्रमुख नितिन मुरुका के मुताबिक, “अभी हेजिंग के सिलसिले में काफी सारी कॉल बिक्री व पुट खरीद हो रखी है। कुल मिलाकर मुझे लगता है कि वोलैटिलिटी सूचकांक ऊपर जाएगा और बाजार चूंकि 5300 से नीचे बंद हुआ है, इसलिए अब यह 4800 तक गिर सकता है।”