रमेश की व्यथा-कथा जारी है। कितने अफसोस की बात है कि उसने मेडिक्लेम करा रखा था जिसमें कैशलेस हास्पिटलाइजेशन की सुविधा थी। फिर भी बीमारी का खर्च उसने अपनी जेब से भरा। इसके बाद भी टीपीए (थर्ड पार्टी एडमिनिस्ट्रेटर) उसके क्लेम दिलाने में आनाकानी करता रहा। टीपीए बीमा कंपनी और बीमित के बीच का दलाल होता है जनाब। और, दलालों की हरकत और फितरत तो आप जानते ही होंगे। तो, अब कहानी आगे की…
रमेश ने हफ्ते भर इंतजार करने के बाद वापस टीपीए को फ़ोन लगाया कि हमारे स्वास्थ्य बीमा भुगतान का क्या हुआ और हमें चेक कब तक मिलेगा। टीपीए के कार्यालय से जबाब मिला कि आपने बीमार होने पर हमें इसका इंटिमेशमन (जानकारी) नहीं दिया था। इसलिए आपका दावा रिजेक्ट कर दिया गया है। रमेश ने साफ किया कि हमने टीपीए के दिए फ़ैक्स नंबर पर उन्होंने 24 घंटों के अंदर ही इंटीमेशन फ़ैक्स कर दी थी और बाद में उसके कार्यालय में इंटीमेशन की एक प्रति स्पीड पोस्ट से भी भेजी है, साथ ही सरकारी बीमा कंपनी को भी सूचित किया था।
लेकिन टीपीए कार्यालय अड़ा रहा कि हमें आपकी तरफ़ से कोई फ़ैक्स नहीं मिला और न ही कोई स्पीड पोस्ट, तो रमेश ने उन्हें बताया कि हमारे पास फ़ैक्स की ओके रिपोर्ट है, जो कि वापिस से आपको फ़ैक्स कर रहे हैं। टीपीए कार्यालय ने वह फ़ैक्स की ओके रिपोर्ट भी मानने से इंकार कर दिया क्योंकि उस ओके रिपोर्ट पर टीपीए कार्यालय का फ़ैक्स नंबर प्रिंट नहीं था, तो रमेश ने उनसे कहा कि अभी जो ओके रिपोर्ट की ओके रिपोर्ट आयी है उसमें भी आपका फ़ैक्स नंबर नहीं है। अब टीपीए ने बोला कि आप साबित कीजिए कि आपने हमें इंटीमेशन दी थी। रमेश ने अपनी बीमा कंपनी में बात की तो वहां से बताया गया कि उन्होंने भी इंटीमेशन फ़ैक्स की है और कभी भी टीपीए को किए गए फ़ैक्स की ओके रिपोर्ट में कभी भी उनका फ़ैक्स नंबर नहीं आता। टीपीए ने फ़ैक्स मशीन में ही कोई गड़बड़ी कर रखी है। साथ ही जो प्रति रमेश ने बीमा कंपनी को भेजी थी वो उनके आवक रजिस्टर में चढ़ी हुई है। यही नहीं, बीमा कंपनी ने भी स्पीड पोस्ट से टीपीए को जानकारी भेजी है, जो कि उनके जावक रजिस्टर में दर्ज है।
टीपीए कार्यालय को यह जानकारी दी गई तो वहां से कहा गया कि इंटिमेशन की कॉपी जो कि बीमा कंपनी ने प्राप्त की थी, उनके सील और साइन के साथ वाली इंटीमेशन की कॉपी फ़ैक्स करिए और एक फ़ोटोकॉपी स्पीडपोस्ट से भेजिए। फ़ैक्स करने के बाद टीपीए कार्यालय से फ़ोन करके पक्का कर लिया कि फ़ैक्स मिल गया है और बीमा कंपनी द्वारा भी अधिकारी अधिकृत पत्र उनको भेजा जा रहा है।
इसी बीच रमेश ने टीपीए को इंटिमेशन के बारे में टीपीए और आईआरडीए से जानकारी ली तो बहुत सी खामियाँ नजर आईं।
टीपीए को इंटिमेशन: टीपीए के स्थानीय कार्यालय को आपातस्थिति में 24 घंटों के अंदर इंटिमेशन फ़ैक्स करना होता है और फ़िर फ़ोन पर इस बाबद पक्का कर लिया जाए कि उन्हें इंटिमेशन मिल गया है। अगर पहले से ही किसी चिकित्सा को प्लान किया गया है तो भर्ती करने के पहले टीपीए को इंटिमेशन देकर स्वीकृति ले ली जाए।
खामियां: जब रमेश ने टीपीए से पूछा कि हमने आपको इंटिमेशन दे दी पर हमें इसकी प्राप्ति रसीद नहीं मिली और फ़ैक्स की ओके रिपोर्ट पर भी आपका फ़ैक्स नंबर नहीं है, दो महीने बाद जब हम भुगतान के लिए दावा करेंगे तो आप इंटिमेशन न करने को लेकर हमारा केस रिजेक्ट कर सकते हैं और इंटिमेशन दिया है इसे साबित करने को कह सकते हैं। जब उनसे इस बाबत जबाब मांगा गया तो कार्यालय का जबाब था कि प्राप्ति की रसीद का कोई प्रावधान नहीं है। फ़िर रमेश ने उनसे टीपीए में उनसे संबद्ध उच्च अधिकारी का फ़ोन नंबर मांगा ताकि इस स्थिति को स्पष्ट किया जा सके। लेकिन टीपीए कार्यालय ने किसी भी उच्च अधिकारी का नंबर देने से मना कर दिया।
रमेश ने हैदराबाद स्थित आईआरडीए कार्यालय को फ़ोन किया और उनके अधिकारियों से टीपीए को इंटीमेशन के संबंध में जानकारी चाही गई तो उनके भी हाथ बंधे हुए ही नजर आए। वहाँ से भी यही जबाब मिला कि आपके पास फ़ैक्स की ओके रिपोर्ट और कूरियर या स्पीड पोस्ट की रसीद रखना चाहिए। उन्हें कहा गया कि फ़ैक्स की ओके रिपोर्ट में टीपीए का फ़ैक्स नंबर नहीं आता है तो आईआरडीए के अधिकारी कुछ भी कहने की स्थिती में नहीं थे। कूरियर और स्पीड पोस्ट से इंटिमेशन में टीपीए यह कहकर क्लेम रिजेक्ट कर सकता है कि 24 घंटों के अंदर सूचित नहीं किया गया, इस पर भी आईआरडीए के अधिकारी कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं थे, बस इतना ही कहा गया कि हम इसमें आपकी कोई सहायता नहीं कर सकते हैं। इसके लिए आपको संबद्ध बीमा लोकापाल से संपर्क करना होगा।
मेडिक्लेम के लिए बीमा कंपनियां इतने रुपए लेती हैं। पर टीपीए के लिए आईआरडीए का कोई भी दिशानिर्देश साफ़ नहीं है। या तो काफ़ी उच्च स्तर पर मिलीभगत है या फ़िर आईआरडीए और बीमा कंपनियों को यह साफ़ नहीं है कि टीपीए के लिए क्या दिशानिर्देश होना चाहिए। बीमा नियामक को टीपीए से संबंधित दिशानिर्देशों पर ध्यान देकर इन कमजोरियों को दूर करना चाहिए।
यहां पर टीपीए है हेरिटेज हेल्थ प्राइवेट लिमिटेड, कोलकाता और बीमा कंपनी है यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेन्स। आगे समाचार यह है कि अगर अब भी कुछ नहीं होता है तो रमेश इस गंदे सिस्टम से लड़ाई का मन बना चुका है, जिसके तहत पहले वह बीमा लोकापाल, भोपाल में शिकायत दर्ज करवाएगा और फ़िर दायर करेगा एक जनहित याचिका। लेकिन संभव है कि बीमा लोकपाल या ओम्बड्समैन कुछ कर दिखाए क्योंकि आईआरडीए दावा तो यही कर रहा है।
– विवेक रस्तोगी (लेखक वित्तीय मामलों के जानकार हैं और कल्पतरु नाम का ब्लॉग चलाते हैं। यह लेख इसी ब्लॉग से साभार लिया गया है)