रिजर्व बैंक में सुब्बाराव की जगह नए गवर्नर की तैयारी, तीन लोग दौड़ में

भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर डॉ. दुव्वरि सुब्बाराव का तीन साल का कार्यकाल सितंबर में खत्म हो रहा है। इसलिए सरकारी हलकों में उनकी जगह नए गवर्नर को लाने की तैयारियां शुरू हो गई हैं। सूत्रों के मुताबिक इस दौड़ में तीन लोगों का नाम सबसे आगे हैं। ये हैं – शिकागो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सलाहकार रघुराम राजन, आर्थिक मामलों के सचिव आर गोपालन और कार्नेल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर व वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु।

बताते हैं कि न तो वित्त मंत्रालय डॉ. सुब्बाराव को सेवा-विस्तार देने के मूड में है और न ही वे खुद इसके लिए उत्सुक हैं। सूत्रों के मुताबिक उनका स्वास्थ्य गड़बड़ चल रहा है और उन्हें लीवर की कुछ गंभीर समस्या है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने सुब्बाराव के एक्सटेंशन के बारे में वॉशिंगटन में एक समारोह में हिस्सा लेने गए वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने पूछा तो उन्होंने कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। उन्होंने बस इतना कहा कि वे अच्छे गवर्नर हैं।

गौरतलब है कि रिजर्व बैंक के नए गवर्नर का चुनाव प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी मिलकर करेंगे। वित्त मंत्री का कहना है कि अभी से सुब्बाराव की जगह नए गवर्नर की तलाश करना थोड़ा जल्दबाजी होगी। लेकिन जानकारों के मुताबिक नए गवर्नर की तलाश शुरू हो चुकी है। वित्तीय व सरकारी हलकों में नाम पर नाम उछाले जा रहे हैं।

इसमें प्रमुख नाम है प्रधानमंत्री के सलाहकार और अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) के मुख्य अर्थशास्त्री रह चुके रघुराम राजन का। राजन की किताब – Fault Lines: How Hidden Fractures Still Threaten The World Economy ने विश्व स्तर पर उनका प्रोफाइल बड़ा कर दिया है। वे लेहमान संकट उभरने के बाद नवंबर 2008 से ही मनमोहन सिंह के आर्थिक सलाहकार हैं। पिछले साल फोर्ब्स पत्रिका ने राजन को अमेरिकी फेडरल रिजर्व के चेयरमैन बेन बरनाके और नोबेल पुरस्कार से सम्मानित पॉल क्रुगमैन के साथ दुनिया के सात सबसे सशक्त अर्थशास्त्रियों में शुमार किया था। लेकिन धुर-बाजारवादी होने के कारण शायद कांग्रेस आलाकमान व वित्त मंत्री उनके नाम पर एतराज करें। दूसरे, उनको भारत में काम करने का अनुभव नहीं है।

दूसरा खास नाम है आर्थिक मामलों के सचिव आर गोपालन का। गोपालन सुब्बाराव की तरह भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) से आते हैं। नौकरशाहों की सशक्त लॉबी उनके पक्ष में है। साथ ही कहा जाता है कि वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी उन्हें पसंद करते हैं। वित्त मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक गोपालन का प्रशासनिक अनुभव और वाणिज्य मंत्रालय में उनका कामकाज उन्हें रिजर्व बैंक के गवर्नर के लिए आदर्श उम्मीदवार बना देता है। वैसे भी, रिजर्व बैंक के पिछले तीन गवर्नर आईएएस ही रहे हैं।

दौड़ ने तीसरा सबसे खास नाम है वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार बंगाली-मोशाय कौशिक बसु का। उन पर वित्त मंत्री प्रणव दा का पूरा भरोसा है। बसु सरकार से लेकर वित्त मंत्री तक को मुद्रास्फीति व राजकोषीय प्रबंधन जैसे मसलों पर सलाह देते रहते हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी उनका सम्मान करते हैं। योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलूवालिया और तमाम वरिष्ठ मंत्री भी बसु को पसंद करते हैं। लेकिन नौकरशाहों के बीच बसु को कतई पसंद नहीं किया जाता।

इन तीनों में से कौन बनेगा रिजर्व बैंक का नया गवर्नर, इसको लेकर सरकारी हलकों में चर्चा और कयास जारी है। हो सकता है कि इनके अलावा किसी अन्य का नाम आगे आ जाए। लेकिन 5 सितंबर 2008 से गवर्नर बने सुब्बाराव को सेवा विस्तार मिलने की उम्मीद न के बराबर है।

रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के प्रमुख अर्थशास्त्री डी के जोशी का कहना है, “मुझे पता है कि सुब्बाराव को मुद्रास्फीति के प्रबंधन को लेकर काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है। लेकिन ईमानदारी से कहूं तो मुद्रास्फीति के बहुत सारे कारण रहे हैं जो मौद्रिक नीति के वश से बाहर थे।” असल में सुब्बाराव ने कई मसलों पर वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी के साथ असहमति जताई है। इसलिए भी शायद उन्हें एक्सटेंशन न मिले। लेकिन डी के जोशी कहते हैं, “जो भी गवर्नर बनता है कि उसे स्वाभाविक रूप से रिजर्व बैंक और मौद्रिक नीति को वरीयता देनी पड़ती है। इसमें टकराव की कोई बात नहीं है। फिर सुब्बाराव इससे पहले तो वित्त मंत्रालय में ही थे।”

वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी की कार्यशैली से परिचित कुछ अधिकारियों का कहना है कि सुब्बाराव को संभवतः इसलिए भी एक्सटेंशन नहीं मिलेगा क्योंकि उनकी नियुक्ति पी चिदंबरम ने की थी। मुखर्जी ने जिस तरह चिदंबरम द्वारा नियुक्त सी बी भावे को सेबी और अशोक चावला को वित्त मंत्रालय में सेवा विस्तार नहीं दिया, उसी तरह सुब्बाराव का कार्यकाल वे आगे नहीं बढ़ाएंगे।

खैर, रिजर्व बैंक में कोई भी आए, मौजूदा गवर्नर सुब्बाराव ने लोकतांत्रिक शैली और पारदर्शिता की जो नई संस्कृति पैदा की है, उससे अब पीछे नहीं हटा जा सकता। वित्तीय समावेश और वित्तीय साक्षरता को लेकर भी सुब्बाराव ने एक नौकरशाह की तरह नहीं, बल्कि सामाजिक कार्यकर्ता जैसा उत्साह दिखाया है। उन्होंने पिछले तीन सालों में व्यक्ति के बजाय टीम के काम को प्रोत्साहित किया है। उन्होंने मौद्रिक नीति बनाने तक की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के उपाय किए हैं। यही नहीं, रिजर्व बैंक के सर्कुलर अब पहले ज्यादा समझ में आने लगे हैं तो इसका श्रेय 1972 बैच के आईएएस टॉपर दुव्वरि सुब्बाराव को जाता है। सुब्बाराव ने आईआईटी खड़गपुर से इंजीनियरिंग की डिग्री ली है और कानपुर आईआईटी से उन्होंने फिजिक्स में एमएससी कर रखा है।

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