आगे है जीविका बचाने की कठिन जंग
भारत ही नहीं, पूरी दुनिया की अधिकतर आबादी अभी या तो लॉकडाउन में है या काफी रोकटोक के साथ काम पर जा रही है। कोरोना वायरस का प्रकोप समाप्त करने की रणनीति यह नहीं है, यह बात सभी जानते हैं। इसका मकसद बीमारी के विस्फोट का दायरा घटाने और बचाव का ढांचा खड़ा करने के लिए समय हासिल करने तक सीमित है। फ्लू के वायरस की तरह यह गर्मी आने के साथ नरम पड़ जाएगा, यह समझऔरऔर भी
तुझसे क्या डरना!
भगवान या तो अदृश्य बैक्टीरिया है या वायरस या किसी किस्म की चुम्बकीय शक्ति। तीनों ही स्थितियों में उससे डरने की नहीं, निपटने की जरूरत है। लेकिन अंध आस्था में हम देख नहीं पाते कि भगवान से डराकर दूसरा अपना स्वार्थ सिद्ध कर रहा है।और भीऔर भी
खैरात नहीं, यहां चक्कर मुनाफे का
किसी जमाने में सेठ लोग धर्मशालाएं और कुएं खुदवाकर खैरात का काम करते थे। लेकिन आज कोई कंपनी किसी कल्याण के लिए नहीं, बल्कि शुद्ध रूप से मुनाफा कमाने के लिए बनती है। उसके काम से अगर किसी का भला होता है तो यह उसका बाय-प्रोडक्ट है, असली माल व मकसद नहीं। वो तो ऐन केन प्रकरेण ग्राहक या उपभोक्ता की जेब से नोट लगाने के चक्कर में ही लगी रहती है। बड़े-बड़े एमबीए और विद्वान उसेऔरऔर भी
सास्केन में भरपूर सांस है संभलने की
बैक्टीरिया व वायरस हर तरफ फैले रहते हैं। लेकिन जिनके शरीर का एम्यून सिस्टम या प्रतिरोध तंत्र मजूबत रहता है, उनका ये कुछ नहीं बिगाड़ पाते। हां, उनके भी शरीर को बैक्टीरिया व वायरस से बराबर युद्धरत रहना पड़ता है। इसी तरह कंपनियों को भी बराबर बदलते हालात व समस्याओं से दो-चार होना ही पड़ता है। प्रबंधन तंत्र दुरुस्त हो, नेतृत्व दक्ष हो तो कंपनी हर समस्या के बाद और निखरकर सामने आती है, जबकि प्रबंधन तंत्रऔरऔर भी
बर्ड फ्लू का वायरस तैयार, रुकी रिसर्च रिपोर्ट
बर्ड फ्लू को समझने के लिए मानव निर्मित वायरस तैयार हो गया है। लेकिन अमेरिका को डर है कि कहीं आतंकवादी इसे जैविक हथियार के बतौर पर न इस्तेमाल करने लग जाएं। इसलिए उसने दुनिया की दो मशहूर विज्ञान पत्रिकाओं साइंस और नेचर से कहा है कि वे इस रिसर्च का ब्यौरा न जारी करें। अमेरिकी सरकार की विज्ञान सलाहकार समिति, नेशनल साइंस एडवाइजरी बोर्ड फॉर बायोसिक्योरिटी (एनएसएबीबी) ने आशंका जताई है कि इस रिसर्च से जुड़ेऔरऔर भी
शुद्धि अभियान
हम शरीर में न जाने कितने रोगाणु लिए फिरते हैं। न जाने कितने वाइरस व बैक्टीरिया के कैरियर बने रहते हैं। इनसे निपट लेती है शरीर की प्रतिरोधक क्षमता। लेकिन रुग्ण विचारों से निपटने का जिम्मा हमारा है।और भीऔर भी