ढोल को कितनी भी ज़ोर से पीटा जाए, एक न एक दिन उसकी पोल खुल ही जाती है। मोदी सरकार ने देश के राष्ट्रीय खातों का जो हाल किया है, उसकी पोल अब आईएमएफ जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्था ने खोल दी है। सवाल पूछे जाने लगे हैं कि मुद्रास्फीति से लेकर जीडीपी तक के आंकड़े ज़मीनी हकीकत से मेल क्यों नहीं खाते? जब देश की लगभग 90% अर्थव्यवस्था अनौपचारिक या असंगठित क्षेत्र में है, तब 10% संगठित क्षेत्रऔरऔर भी

देश की 146 करोड़ आबादी में करीब 56 करोड़ 15 साल से कम उम्र के बच्चे या 65 साल के ऊपर के वृद्ध हैं। बाकी 90 करोड़ लोगों में से 70 करोड़ ऐसे हैं जो किसी तरह जीवन-यापन करते हैं। खुद पूंजी बाज़ार नियामक संस्था, सेबी के अध्ययन के मुताबिक देश के 79.7% परिवार इतना भी नहीं कमा पाते कि कहीं भी निवेश का जोखिम उठा सकें। ऐसे में सरकार के पास खुला मैदान है कि देशऔरऔर भी

अक्टूबर में रिटेल मुद्रास्फीति की दर अब तक के न्यूनतम स्तर 0.25% पर थी तो नवंबर में बढ़ने के बावजूद 0.71% रही है। लेकिन यह डेटा मायावी है क्योंकि यह न तो आम भारतीय का हाल बयां करता है और न ही हमारी अर्थव्यवस्था का। रिटेल मुद्रास्फीति के घटने की खास वजह है कि खाद्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति साल भर पहले से अक्टूबर में 5.02% और नवंबर में 3.91% घटी है। लेकिन ठीक पिछले महीने से तुलनाऔरऔर भी

अक्टूबर में रिटेल मुद्रास्फीति की दर 0.25% और नवंबर में बढ़कर 0.71% हो गई है। यह भी नहीं हुआ होता, अगर नवंबर में साल भर पहले से सोने के दाम 58.32% और चांदी के दाम 65.52% नहीं बढ़ गए होते। आप रोते रहिए कि दो महीने में एक दर्जन अंडे का भाव 66 रुपए से 39.39% बढ़कर 92 रुपए हो गया। लेकिन सरकार कहेगी कि अंडा साल भर पहले से 5.2% ही महंगा हुआ है। आईएमएम जैसाऔरऔर भी

अमेरिका में मुद्रास्फीति की दर इस साल अगस्त में 2.9% और सितंबर में 3% रही है। अक्टूबर में सरकार के शटडाउन के चलते डेटा नहीं जारी हुआ, जबकि नवंबर का डेटा 18 दिसंबर को आएगा। चीन में मुद्रास्फीति की दर अक्टूबर में 0.2% और नवंबर में 0.7 रही है। जापान में मुद्रास्फीति सितंबर में 2.9% और अक्टूबर में 3% रही है। जर्मनी में मुद्रास्फीति की दर सितंबर में 2.4%, अक्टूबर में 2.3% और नवंबर में भी 2.3%औरऔर भी

जीडीपी का डेटा ऊपर-ऊपर जैसा दिखाता है, अंदर घुसने पर पता चलता है कि वैसा कतई नहीं है और हकीकत बड़ी दारुण है। आखिर जीडीपी का बढ़ना और निजी क्षेत्र के घटिया प्रदर्शन एक साथ कैसे? जीडीपी में निजी क्षेत्र से जुड़े दो सबसे बड़े हिस्से हैं पीएफसीई (प्राइवेट फाइनल कंजम्पशन एक्सपेंडिचर) या निजी खपत पर होनेवाला खर्च और निजी क्षेत्र का पूंजी निवेश। निजी खपत बढ़ती है तो निजी पूंजी निवेश भी बम-बम करता है। लेकिनऔरऔर भी

संयोग या प्रयोग से सत्ता में हाथ में आ जाए और लोकतांत्रिक संस्थाओं को पंगु बनाकर येनकेन प्रकारेण सत्ता में बने रहने की सिद्धि हासिल कर ले तो किसी भी सत्ताधारी दल को गुमान हो जाता है कि वो भोलेभाले आम लोगों को ही नहीं, मीडिया से लेकर बुद्धिजीवियों व अर्थशास्त्रियों तक को चरका पढ़ा सकता है। लेकिन इतिहास गवाह है कि ऐसा कभी लम्बे समय तक नहीं चलता। शासन की नंगई एक न एक दिन सबसेऔरऔर भी

जब विश्व अर्थव्यवस्था की विकास दर 2.5% से 2.6% पर अटकी पड़ी हो, सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका के इस साल 2025 में बहुत हुआ तौ 1.6% बढ़ने का अनुमान वहां का केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व जता रहा हो, दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन की विकास दर घटकर 4.5% पर आ गई हो, तब भारत की अर्थव्यवस्था का इस साल जून तिमाही में 7.8% और सितंबर तिमाही में 8.2% बढ़ जाना किसी को भी हतप्रभ कर सकता है।औरऔर भी

देश के राष्ट्रीय आर्थिक आंकड़ों पर आईएमएफ के एतराज पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की प्रतिक्रिया को बेहयाई नहीं, केवल थेथरई कहा जा सकता है। मोदी तो अभी भी देश को राष्ट्रगीत वंदे मातरम तक के नामं पर 2047 विकसित बनाने का झांसा दिए जा रहे हैं। वहीं, निर्मला सीतारमण राष्ट्रीय खातों की विसंगतियों को महज आधार वर्ष को बदलने के तकनीकी पेंच में उलझा देना चाहती हैं। महोदया, असल सवाल यह हैऔरऔर भी

जो बात दबी जुबान से कई सालों से कही जा रही थी, ‘अर्थकाम’ जिसको लेकर हल्ला मचाता रहा है, जिसे वो अर्थव्यवस्था के साथ वोट-चोरी जैसा अपराध बताता रहा है, जिसे देशभक्त व जागरूक अर्थशास्त्री बराबर उठाते रहे हैं और जिसे हाल में बिजनेस चैनल व पोर्टल भी उठाने लगे थे, वो अब जगजाहिर हो गई है। अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) ने अपनी ताजा सालाना समीक्षा में कहा है कि भारत के जीडीपी, जीवीए और मुद्रास्फीति जैसे राष्ट्रीयऔरऔर भी