शेयर बाज़ार में ट्रेडिंग विशुद्ध रूप से सट्टेबाज़ी का बिजनेस है, जबकि निवेश हमेशा कंपनी के हर पहलू को देख-परखकर समझदारी से किया जाता है। फिर भी दोनों में घाटा लगने की पूरी गुंजाइश है। यही शेयर बाज़ार का रिस्क है, जिसे कोई खत्म नहीं कर सकता। फिर भी हमें सट्टेबाज़ी और सच्चे निवेश के अंतर को समझना होगा। सच्चा निवेश वो है जिसमें कंपनी का बिजनेस मजबूत हो, लेकिन उसके शेयर अपने अंतर्निहित मूल्य से कमऔरऔर भी

जो शेयर बाज़ार का स्वभाव समझते हैं, वे जानते हैं कि यह उतार-चढ़ाव या मंदी और तेज़ी के चक्र में चलता है। बाज़ार गिरता है तो वे परेशान नहीं होते और बाज़ार उठता है तो वे हैरान नहीं होते। पिछले दो-ढाई दशक के अनुभव से एक बात बहुत साफ हो जाती है कि जिन्होंने भी अच्छी क्वालिटी के स्टॉक्स वाजिब भाव पर खरीदे हॆ, उन्होंने लम्बी अवधि या पांच-दस साल में जमकर मुनाफा कमाया है। अभी कीऔरऔर भी

शेयर बाज़ार में उथल-पुथल। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) भागे जा रहे हैं। चालू वित्त वर्ष 2025-26 में अब तक कभी खरीद तो कभी बिक्री करते हुए शेयरों से कुल मिलाकर ₹26,317 करोड़ निकाल चुके हैं। इसमें भी अगस्त में उन्होंने ₹34,993 करोड़ की शुद्ध निकासी की है, जबकि सितंबर के पहले पांच दिन में ही ₹12,257 करोड़ निकाले हैं। बीते वित्त वर्ष 2024-25 में उन्होंने ₹1,27,041 करोड़ निकाले थे। इस बार उथल-पुथल के भरे दौर में क्याऔरऔर भी

रूस-यूक्रेन युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहा। मध्य-पूर्व में इस्राइल ने सबके साथ युद्ध छेड़ रखा है। कभी ईरान तो कभी सीरिया और कभी यमन। गाज़ा में युद्ध-विराम की कोशिशों के बावजूद वो फिलिस्तीनियों को मिटाने तुला है। अपने यहां पहलगाम का आतंकी हमला। फिर ऑपरेशन सिंदूर और पाकिस्तान के साथ जंग। हर तरफ छाए युद्ध के इन हालात से भारत ही नहीं, दुनिया भर के शेयर बाज़ार हलकान हैं। लेकिन इसका मतलब नहीं कि बिजनेसऔरऔर भी

शेयर बाज़ार डर और लालच की आदिम भावनाओं से चलता है। अक्सर ये भावनाएं इतनी हावी हो जाती हैं कि कंपनियों की मूलभूत स्थिति कोई मायने ही नहीं रखती। कंपनी का कोई धंधा ही नहीं। है भी तो अभी चल नहीं रहा। फिर भी उसके शेयर आसमान छूने लगते हैं। अडाणी ग्रीन एनर्जी का शेयर इसका शानदार उदाहरण रहा है, जब सच्चाई को नज़रअंदाज़ लालच उसके सिर चढ़कर बोल रहा था। हालांकि कभी-कभी कंपनियों के प्रवर्तकों सेऔरऔर भी

दुनिया भर के आर्थिक व वित्तीय जगत में अनिश्चितता छाई है। रूस-यूक्रेन युद्ध ने तीन साल से उथल-पुथल मचा रखी है। मध्य-पूर्व अब भी शांत नहीं हुआ है। ऊपर से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने टैरिफ का नया बखेड़ा खड़ा कर रखा है। उम्मीद थी कि अलास्का में ट्रम्प-पुतिन मुलाकात से कुछ ठोस नतीजा निकलेगा। लेकिन अब यूरोपीय संघ तक अलग भाग रहा है। इन सबका असर भारत पर भी पड़ रहा है। सबसे तेज़ गति औरऔरऔर भी

अनिश्चितता ही शेयर बाज़ार का दुख है, सुख है। थ्रिल और अवसाद में डुबाने का कारण भी। इस समय शेयर बाज़ार पर यही अनिश्चितता छाई है। वो भी छोटी-मोटी नहीं, अपने चरम पर। रूस-यूक्रेन का युद्ध जारी है। शायद 15 अगस्त को पुतिन-ट्रम्प की मुलाकात के बाद थम जाए। मध्य-पूर्व में इस्राइल-ईरान का युद्ध थम गया तो इस्राइल ने सीरिया पर हमला कर दिया। पूरा इलाका अब भी सुलग रहा है। ऊपर से ट्रम्प का सारी दुनियाऔरऔर भी

मुबई में किसी ने साल 2005 में ₹30 लाख का फ्लैट खरीदा होता तो वो दस साल में एक करोड़ और अब तक बीस साल में दो करोड़ से ऊपर का हो गया होगा। म्यूचुअल फंड की इक्विटी स्कीम में कोई ₹35,000 प्रति माह की एसआईपी करे तो 15% सालाना चक्रवृद्धि रिटर्न के हिसाब से दस साल में उसका धन एक करोड़ रुपए हो जाएगा। हालांकि इस दौरान उसका कुल सीधा-सीधा निवेश ₹42 लाख का होगा। लेकिनऔरऔर भी

हमारे शेयर बाज़ार के बढ़ने और कंपनियों के शेयर के चढ़ने का मूलाधार है भारत की विकासगाथा। इस विकासगाथा के दो मूल आधार हैं। एक, हमारी बड़ी आबादी और बड़ा मध्य-वर्ग जो देश में उपभोग का बड़ा बाज़ार बनाता है। हमारा खाता-पीता मध्यवर्ग इतना बड़ा है कि उसमें पूरा यूरोप समा जाए। दूसरा मूल आधार है आबादी का 65% हिस्सा जिसकी उम्र 35 साल से कम है, जिसे हमारा डेमोग्राफिक डिविडेंड भी कहा जाता है। उपभोग काऔरऔर भी

शेयर बाज़ार को कितने राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय कारक किस हद तक प्रभावित कर रहे हैं, क्या इसे हम-आप तो छोडिए, कोई विशेषज्ञ भी सही-सही सटीक रूप से जान सकता है? आप कहेंगे कि भले ही विशेषज्ञ न जान सके, लेकिन आज लार्ज लैंग्वेज़ मॉडल (एलएलएम) पर काम कर रहे एआई टूल्स तो ज़रूर जानकर हमें बता सकते हैं। मगर, एआई टूल्स भी तो जो पहले से उपलब्ध है, उसे ही ताश के पत्तों की तरह शफल करकेऔरऔर भी