अभी अमेरिका में गोल्डमैन सैक्स पर खुद वहां की पूंजी बाजार नियामक संस्था एसईसी (सिक्यूरीज एंड एक्सचेंज कमीशन) द्वारा फ्रॉड का आरोप लगाने जाने के बाद महीने भर भी नहीं बीते हैं कि दूसरे अहम वित्तीय संस्थान मॉरगन स्टैनले पर निवेशकों को डेरिवेटिव सौदों में गुमराह करने का आरोप लग गया है। प्रमुख अंतरराष्ट्रीय अखबार वॉल स्ट्रीट जनरल ने कारोबारियों के हवाले खबर दी है कि अमेरिकी की संघीय जांच एजेंसियां इन सौदों की तहकीकात में लगऔरऔर भी

मैं लगातार इस बात पर कायम हूं कि भारत सचमुच विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) के लिए जबरदस्त आकर्षण का स्रोत बना हुआ है। यूरोप के ऋण संकट ने विदेशी पूंजी के प्रवाह को भारत की तरफ मोड़ा है। यह बात पिछले कुछ दिनों में वित्त मंत्रालय के आला अधिकारी भी स्वीकार कर चुके हैं। जिस तरह कल भारतीय रिजर्व बैंक ने इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए विदेशी वाणिज्यिक उधार (ईसीबी) की शर्तों में ढील दी और गवर्नर डी सुब्बारावऔरऔर भी

जगन्नाधम तुनगुंटला 1987 में वॉल स्ट्रीट (अमेरिकी शेयर बाजार) के निवेश बैंक जहां-तहां से पूंजी जुटाने की जुगत में भिड़े हुए थे ताकि कबाड़ बन चुके बांडों में अपने निवेश को लगे धक्के से निकलकर बैलेंस शीट को चमकदार बनाया जा सके। ऐसे माहौल में सालोमन ब्रदर्स के लिए संकटमोचन बनकर आ गए वॉरेन बफेट। उन्होंने सालोमन के परिवर्तनीय वरीयता स्टॉक ने 70 करोड़ डॉलर का निवेश कर दिया। अगस्त 1991 तक सब कुछ सही चला। तभीऔरऔर भी