अभी कल तक बड़े-बड़े विद्वान कह रहे थे कि जनवरी माह में थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति की दर 8.5 फीसदी रहेगी। लेकिन, आज सोमवार को घोषित दर 8.23 फीसदी रही है जो इससे पहले के महीने दिसंबर की मुद्रास्फीति दर 8.43 फीसदी से कम है। अर्थशास्त्री कह रहे थे कि खाने-पीने की चीजों के ज्यादा दाम और पेट्रोल के महंगा होने से मुद्रास्फीति बढ़ जाएगी। लेकिन हकीकत में गेहूं, दाल व चीनी जैसे जिंसों केऔरऔर भी

भारतीय शेयर बाजार में बाजार के शातिर उस्तादों और राजनेताओं का क्या खेल हो सकता है? उनके बीच क्या कोई दुरभिसंधि है? वह भी तब जब पूरा बाजार, खासकर डेरिवेटिव सेगमेंट बेहद खोखले आधार पर खड़ा है? शेयर बाजार में होनेवाले कुल 1,70,000 करोड़ रुपए के कारोबार में से बमुश्किल 15,000 करोड़ कैश सेगमेंट से आता है। इस कैश सेगमेंट से अरबों डॉलर का बाजार पूंजीकरण एक झटके में उड़ जाता है, जबकि वास्तविक स्थिति यह हैऔरऔर भी

अर्थशास्त्रियों और विश्लेषकों का अनुमान है कि रिजर्व बैंक 25 जनवरी को मौद्रिक नीति की तीसरी त्रैमासिक समीक्षा में ब्याज दरें 0.25 फीसदी बढ़ा देगा। रेपो दर को 6.25 फीसदी के मौजूदा स्तर से बढ़ाकर 6.5 फीसदी और रिवर्स रेपो दर को 5.25 फीसदी के मौजूदा स्तर से बढ़ाकर 5.5 फीसदी कर दिया जाएगा। इस कदम का मकसद मुद्रास्फीति की बढ़ती दरों पर लगाम लगाना होगा। समाचार एजेंसी रॉयटर्स के एक मत-संग्रह के मुताबिक आर्थिक विश्लेषक मानतेऔरऔर भी

125 अरब डॉलर कोई मामूली रकम नहीं होती। 2007-08 में देश का कुल निर्यात 163 अरब डॉलर का रहा है। लेकिन वॉशिंगटन की एक रिसर्च संस्था ग्लोबल फाइनेंशियल इंटेग्रिटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2000 से 2008 के बीच भारत से 125 अरब डॉलर का जनधन बाहर निकला है। यह धन राजनेताओं ने भ्रष्टाचार से हासिल किया था और छिपाने के लिए वे इसे विदेश में ले गए। संस्था की अर्थशास्त्री कार्ली करसियो ने अपने ब्लॉगऔरऔर भी