वो खेलता रहा जेब में आंकड़े रखकर

भारतीय शेयर बाजार में बाजार के शातिर उस्तादों और राजनेताओं का क्या खेल हो सकता है? उनके बीच क्या कोई दुरभिसंधि है? वह भी तब जब पूरा बाजार, खासकर डेरिवेटिव सेगमेंट बेहद खोखले आधार पर खड़ा है? शेयर बाजार में होनेवाले कुल 1,70,000 करोड़ रुपए के कारोबार में से बमुश्किल 15,000 करोड़ कैश सेगमेंट से आता है। इस कैश सेगमेंट से अरबों डॉलर का बाजार पूंजीकरण एक झटके में उड़ जाता है, जबकि वास्तविक स्थिति यह है कि एफआईआई की बिकवाली मात्र 1000 करोड़ रुपए के आसपास रहती है।

पिछले तीन सत्रों से बाजार में गदर मची है और सेंसेक्स 1200 अंक लुढ़क चुका है। सूत्रों के मुताबिक कुछ ब्रोकरों ने नेताओं की होल्डिंग बाजार में बेची है। इसके बाद आईआईपी (औद्योगिक उत्पादन सूचकांक) के आंकड़े आ गए। तीस अर्थशास्त्रियों का अनुमान था कि नवंबर में आईआईपी में 6.6 फीसदी की वृद्धि होगी, जबकि वास्तविक आंकड़ा निकला मात्र 2.7 फीसदी। इसका दोषी मात्र एक सेक्टर, कंज्यूमर गुड्स सेक्टर रहा है जिसकी विकास दर पिछले साल नवंबर के 10.1 फीसदी से अचानक घटकर (-) 3.1 फीसदी हो गई है। इसमें भी कंज्यूमर ड्यूरेबल्स की विकास दर पिछले साल नवंबर के 36.3 फीसदी से घटकर 4.3 फीसदी पर आई है। आश्चर्य इसलिए हो रहा है क्योंकि महीने भर पहले ही अक्टूबर 2010 में यह सेगमेंट 30.86 फीसदी बढ़ा था। नवंबर तो त्योहारी सीजन के बाद का महीना था। क्या कंज्यूमर नॉन-ड्यूरेबल सेगमेंट में आई 6 फीसदी गिरावट इतना झटका लगा सकती है? यकीन नहीं आ रहा।

एक बात और नोट करने की है। जब अधिकांश ट्रेडर और निवेशक अपने स्टॉक्स बेच रहे थे, अपनी पोजिशन काट रहे थे, तब बाजार में एक शख्स ऐसा था जो शुक्रवार से ही अपनी जेब में आईआईपी के आंकड़े रखकर प्यार से अपनी शॉर्ट पोजिशन कवर कर रहा था। इसके लिए वाकई हमारे स्टॉक एक्सचेंजों को वीरता पुरस्कार दिया जाना चाहिए जो सर्वोत्तम होने दावा करते हैं। कल रात से आईआईपी के आंकड़े बाजार में टहल रहे थे। हालांकि ये इतने कम थे कि किसी को इन पर भरोसा नहीं हो रहा था क्योंकि ये बेहद कम थे। लेकिन वास्तविक आंकड़े वही निकले।

अभी तो खलबली रिटेल निवेशकों के बीच मची है और उनको बचाने के लिए किसी भी सरकारी महकमे या अधिकारी की तरफ से किसी पहल की उम्मीद नहीं है। असली और दुखद बात यह है कि बाजार को किसी ठोस वजह से नहीं, बल्कि चालबाजी से तोड़ा गया है। कंपनियों के शुद्ध लाभ में 21 फीसदी से ऊपर वृद्धि होनी है। इस वृद्धि के मद्देनजर सेंसेक्स मात्र 15 के पी/ई अनुपात पर चल रहा है जो बीते कई सालों का औसत है। ऐसे में आपको तय करना है कि आप बेचकर घाटा उठाएं या अपने स्टॉक्स को होल्ड किए रखें।

मुद्रास्फीति का नया भूत आपके सामने है। हमारा देश ही ऐसा है जहां सभी निवेशकों व ट्रेडरों को अर्थशास्त्री बना दिया जा रहा है और उन्हें चक्र के सबसे निचले पायदान पर पहुंच कर ही कोई बात समझ में आती है।

ट्रेडरों को दांव लगाने का मौका चाहिए और इस तरह का बाजार ही उन्हें ऐसे मौके देता है बशर्ते वे जोखिम उठाने को तैयार हों। निवेशक निचले स्तरों पर खरीद कर सकते है, बशर्ते उन्हें खुद पर भरोसा हो। कमजोर दिल के लोगों को स्थायित्व आने तक बाजार से दूर रहना चाहिए। आलोचकों को ज्यादा इंतजार नहीं करना चाहिए और आखिरी सांस तक शॉर्ट सेल करते रहना चाहिए।

यदि आप अपनी मूर्खता में खूबसूरती पर ध्यान नहीं देते तो एक दिन वह आपसे जुदा हो जाएगी और आपकी जिंदगी दीन-हीन बन जाएगी। लेकिन अगर आप खूबसूरती की वाजिब कद्र करते हैं तो वह ताजिंदगी आपका साथ निभाती रहेगी।

(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। यह कॉलम मूलत: सीएनआई रिसर्च से लिया जा रहा है)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *