धन देशी-विदेशी हो या काला सफेद, उसका प्रवाह ही शेयरों के भाव तय करता है। इस प्रवाह की वजह कुछ हो सकती है, कोई अच्छी खबर, भावी संभावना या ऑपरेटरों का मैन्यूपुलेशन। रिटेल ट्रेडर को इसका पता तो ज़रूर होना चाहिए। लेकिन यह उसकी ट्रेडिंग रणनीति का हिस्सा नहीं हो सकता, क्योंकि उसके पास यह जानकारी तभी आती है जब बाज़ार और शेयरों के भाव इसे सोख चुके हैं। इसलिए उसे मानकर चलना चाहिए कि स्टॉक ट्रेडिंगऔरऔर भी

शेयर बाजार की ट्रेडिंग तात्कालिकता का खेल है, लम्बे समय के निवेश का नहीं। अगर किसी को भ्रम है कि वो कंपनी के फंडामेंटल जानकर उसके शेयरों में ट्रेडिंग कर सकता है तो उसे डूबने से कोई नहीं बचा सकता। बाज़ार में उतरनेवाले हर ट्रेडर को मन में कहीं गहरे बैठा लेना होगा कि ट्रेडिंग दांव लगाने या सट्टेबाज़ी का ही खेल है। यह भी कि अगर हम अपने रिस्क को संभालकर चलें तो सट्टेबाज़ी अपने-आप मेंऔरऔर भी

शेयर बाज़ार की ट्रेडिंग विशुद्ध रूप से कयासबाज़ी या सट्टेबाज़ी का खेल है। इसका कोई वास्ता कंपनियों के फंडामेंटल्स या बिजनेस के हाल-चाल से नहीं होता। अर्थव्यवस्था और आर्थिक नीतियों से भी इसका कोई सीधा रिश्ता नहीं। ट्रेडिंग में सबसे अहम है कि शेयर के भाव अभी क्या हैं और आगे कहां तक जा सकते हैं। फर्क समझें कि शेयरों में दीर्घकालिक निवेश बैक एफडी या प्रॉपर्टी में धन लगाने जैसा काम है, जबकि ट्रेडिंग विशुद्ध बिजनेसऔरऔर भी

इस सच से कोई इनकार नहीं कर सकता कि अपने शेयर बाज़ार में 95% ट्रेडर गंवाते और केवल 5% ट्रेडर ही कमाते है। सालों-साल से इस सच पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा। खुद पूंजी बाज़ार नियामक संस्था, सेबी ने ब्रोकरों से डेटा लेकर इस हकीकत की पुष्टि अपनी कई अध्ययन रिपोर्टों में की है। लेकिन हम ब्रोकरों से लेकर एनालिस्टों, स्टॉक एक्सचेंजों और सेबी व सरकार तक से उम्मीद नहीं कर सकते कि वे बाज़ार मेंऔरऔर भी

भारत यकीनन विकसित देश बन सकता है और बनेगा भी। लेकिन किसी व्यक्ति के चमत्कार या उसके हाथों में सारी सत्ता केंद्रित कर देने से नहीं, बल्कि संस्थाओं को मजबूत करने से। ईडी, सीबीआई, एनआईए, इनकम टैक्स विभाग तो कब के अपनी स्वायत्तता खोकर सरकारी गुलाम बन चुके हैं। नीति आयोग से लेकर प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद तक जी-हुजूरियों के मंच हैं। चुनाव आयोग पूरी तरह सत्तारूढ़ दल की कठपुठली बन चुका है। हाईकोर्ट और सुप्रीमऔरऔर भी

सरकार तक का काम खुद कैसे नौकरशाही के मकड़जाल में फंस जाता है, इसका ताज़ा उदाहरण है इसी हफ्ते सोमवार, 1 सितंबर को लॉन्च हुई मुंबई से सिंधुदुर्ग तक की रो-रो फेरी। यह प्रोजेक्ट 2014-19 में फडणवीस के पिछले कार्यकाल में पेश किया गया था। लेकिन केंद्रीय जहाजरानी मंत्रालय और राज्य बंदरगाह विभाग से 147 मंजूरियां लेने में दस साल यूं ही निकल गए। सरकारी भ्रष्टाचार व वसूली से आम लोग ही नहीं, निजी उद्योग भी त्रस्तऔरऔर भी

सरकारी मंजूरियां देश में बिजनेस करनेवालों के जी का जंजाल बनी हुई है। एक एमएसएमई इकाई शुरू करने के लिए बार-बार 57 अनुपालन और केवल पर्यावरण, स्वास्थ्य व सुरक्षा से जुड़े 18 विभिन्न अधिकारियों से 17 अनुमोदन/लाइसेंस लेने पड़ते हैं। हमारे कानून में उद्योग-धंधे संबंधी 75% रेग्य़ुलेशन ऐसे हैं जिनमें जेल तक की सज़ा का प्रावधान है। तमाम सरकारी एजेंसियां बिजनेस करनेवालों से डरा-धमकाकर वसूली करती रहती हैं। भ्रष्टाचार को पालते-पोसते ऐसे माहौल के ऊपर हर बिजनेसऔरऔर भी

मोदी सरकार देश की अर्थव्यवस्था के साथ 11 सालों से जीडीपी को बढ़ाकर दिखाने का छल कर रही है, जबकि ज़मीनी स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। खपत घट रही है। लोगों पर कर्ज बढ़ रहे हैं। कंपनियां देश में नया निवेश न करके बाहर भाग रही हैं। आम लोगों पर ही नहीं, उद्योग धंधों पर भी टैक्स का बोझ बढ़ता जा रहा है। जिस सॉफ्टवेयर क्षेत्र ने जमकर नौकरी दे रखी थी, वो छंटनीऔरऔर भी

जब रिजर्व बैंक तक मौद्रिक नीति समीक्षा में चालू वित्त वर्ष 2025-26 की पहली या जून तिमाही में जीडीपी की विकास दर के बहुत हुआ तो 6.5% रहने का अनुमान जा रहा था, तब सरकार ने शुक्रवार, 29 अगस्त को घोषित किया कि हमारा जीडीपी असल में 7.8% बढ़ा है। मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. नागेश्वरन ने जब प्रेस कॉन्फेंस में यह घोषणा की तो सभी अचंभित रह गए। हर तरफ जब अर्थव्यवस्था में समस्याएं ही समस्याएं दिखऔरऔर भी

ट्रम्प की टैरिफ यंत्रणा से तिरुपति के टेक्सटाइल, आंध्र प्रदेश व ओडिशा के श्रिम्प व्यापार, सूरत के हीरा कारोबार, कानपुर के चमड़ा व भदोही के कालीन उद्योग और उत्तर, दक्षिण व पूरब-पश्चिम तक फैले कृषि निर्यातकों को गहरा सदमा लगेगा। लेकिन सनफार्मा, डॉ. रेड्डीज़ या फाइज़र जैसी दवा कंपनियों पर कोई फर्क पड़ेगा। साथ ही रिलायंस इंडस्ट्रीज़ के पेट्रोलियम उत्पाद और एप्पल के आईफोन भी पहले की तरह बेफिक्र अमेरिका पहुंचते रहेंगे। सरकार चीन, रूस, जापान, ब्रिटेन,औरऔर भी