हर अनुभवी ट्रेडर ट्रेंड को फ्रेंड मानता है। लेकिन इस पारंपरिक और प्रचलित सोच के साथ दो समस्याएं हैं। पहली यह कि ट्रेंड जारी रहा तो यकीनन फायदा होता है। पर इसकी मात्रा इतनी सीमित हो सकती है कि ब्रोकरेज़ व दूसरे खर्च काटने के बाद हो सकता है कि ट्रेंड पर किया गया ट्रेड फालतू की मशक्कत बन जाए। दूसरी समस्या यह है कि मान लीजिए कि आपने सौदे को जैसे ही हाथ लगाया, वैसे हीऔरऔर भी

आप बाज़ार का जबरदस्त विश्लेषण कर लें, शानदार स्टॉक्स चुन लें, भयंकर रिसर्च कर लें, तब भी ट्रेडिंग की जंग में जीत की कोई गारंटी नहीं। लगातार पचास मुनाफे के सौदे, पर एक की सुनामी सब बहा ले जाएगी। अच्छा ट्रेडिंग सिस्टम बड़े काम का है। पर बाज़ार अक्सर सिस्टम से बाहर छटक जाता है। स्टॉप लॉस बांधने में टेक्निकल एनालिसिस से मदद मिलेगी। इससे घाटा कम होगा, पर मिटेगा नहीं। घाटा मिटाने का एकमेव सूत्र हैऔरऔर भी

इनफोसिस का अचानक एक दिन में 10.92% उछल जाना। निफ्टी का फिर से 6000 के ऊपर चले जाना। क्या यह तेज़ी का नया आगाज़ तो नहीं? असल में हर तेज़ी और मंदी के बाज़ार के पीछे मूलभूत या फंडामेंटल कारक होते हैं। अभी के दो मूलभूत कारक हैं अमेरिकी केंद्रीय बैंक, फेडरल रिजर्व के चेयरमैन बेन बरनान्के की तरफ से बांड खरीद पर लटकी तलवार हटा लेने का बयान और इनफोसिस के उम्मीद से बेहतर नतीजे। लेकिनऔरऔर भी

कुछ चीजें लगभग नहीं, एकदम-एकदम अंसभव होती हैं। लेकिन हमेशा जीतने की इच्छा और जिजीविषा इंसान को अक्सर यह मानने पर मजबूर कर देती है कि जो वो चाहता है, वही होगा। नहीं होता तो हम किस्मत से लेकर अपने आसपास के लोगों पर दोष मढ़ने लगते हैं। मैं भी इस बार यही कर रहा हूं। इधऱ-उधर की भागमभाग और उन चार गुरुओ को दोष दे रहा हूं जिनसे मैं हाल-फिलहाल ट्रेडिंग के हुनर सीख रहा हूं।औरऔर भी