ट्रेंड भले हो फ्रेंड, ट्रेडिंग नहीं आसान

इनफोसिस का अचानक एक दिन में 10.92% उछल जाना। निफ्टी का फिर से 6000 के ऊपर चले जाना। क्या यह तेज़ी का नया आगाज़ तो नहीं? असल में हर तेज़ी और मंदी के बाज़ार के पीछे मूलभूत या फंडामेंटल कारक होते हैं। अभी के दो मूलभूत कारक हैं अमेरिकी केंद्रीय बैंक, फेडरल रिजर्व के चेयरमैन बेन बरनान्के की तरफ से बांड खरीद पर लटकी तलवार हटा लेने का बयान और इनफोसिस के उम्मीद से बेहतर नतीजे। लेकिन मूलभूत कारकों को किनारे रख दें तो शेयरों के भाव हमेशा ट्रेडरों और निवेशकों की हरकत से उठते-गिरते हैं।

जब मूलभूत कारक किसी बड़ी चाल की तरफ इशारा कर रहे हों, तब किसी भी ट्रेडर को चार्ट का विश्लेषण करके देखना चाहिए कि टेक्निकल पहलू मूलभूत कारकों की पुष्टि कर रहे हैं या नहीं। कोई ट्रेंड बन रहा है तो उसमें कितना दम है और वो सचमुच है या क्षणिक बुलबुला है। बाज़ार में आम कहावत है कि ट्रेंड आपका फ्रेंड होता है। लेकिन ट्रेंड से खेलना इतना आसान नहीं। ट्रेंड में ट्रेडिंग बहुत मुश्किल होती है।

बाज़ार कभी पहले से निमंत्रण नहीं भेजता कि मैं उड़ान भरनेवाला हूं, आ जाओ। जब कोई ट्रेंड या रुझान कहीं नीचे धरातल पर पड़ा सुगबुगा रहा होता तो चंद लोग ही उसे देख पाते हैं। नए मुल्ला तो इस दौरान सोए पड़े रहते हैं, वहीं प्रोफेशनल ट्रेडर चार्ट पर ब्रेकआउट और डाइवरजेंस को बराबर मॉनीटर करते हैं। वे संकेतों को पहले से पकड़कर कमा लेते हैं जबकि बाकी लोग तब जागते हैं कि जब अखबारों और चैनलों पर बाज़ार व शेयरों की नई ऊंच-नीच सुर्खियां बन जाती है। लेकिन तब तक ट्रेन स्टेशन से छूट चुकी होती है।

वैसे, सच कहें तो नए ब्रेकआउट को पहचानना आसान है, पर ट्रेड करना कठिन है और उसके साथ चलना तो और भी दुरूह। जब कोई ट्रेंड या रुझान रफ्तार पकड़ रहा होता है तो बहुत सारे लोग इंतज़ार करते हैं कि कब पुलबैक होगा, वो नीचे आएगा। लेकिन ट्रेंड जितना मजबूत होता है, उतनी ही कम उम्मीद होती है कि वे ऐसे लोगों की चाहत पूरी करेगा। ऐसे दौर में किसी पोजिशन को होल्ड करके रखने के लिए बेहद धैर्य और आत्मविश्वास की जरूरत होती है। हर ट्रेडर को लगता है कि चुप बैठे तो चूके, इसलिए कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा। चुपचाप बैठकर देखने की कला बड़े अभ्यास और अध्ययन के बाद ही आती है।

सवाल उठता है कि ट्रेंड में ट्रेड करने के लिए खुद को कैसे तैयार करें? आपको इसकी शुरुआत ऐतिहासिक चार्टों के अध्ययन से करनी चाहिए। लेकिन याद रहे, अनुभव की बराबरी कुछ भी नहीं कर सकता। अनुभव का कोई विकल्प नहीं, कोई सानी नहीं। व्यवहार सबसे बड़ा शिक्षक है। ट्रेंड के दौरान इतनी छोटी पोजिशन से शुरू करें जिससे आप पर खास फर्क नहीं पड़ता और आपके मन में कोई गांठ भी न पड़े। जब आप सीखने के दौर में हों, तब कुछ सौ शेयरों या फ्यूचर्स के एक लॉट में ही ट्रेड करें।

साप्ताहिक चार्ट पर ईएमए (एक्सपोनेंशियल मूविंग एवरेज) से देखें कि रुझान/ट्रेंड क्या है। जब यह साफ हो जाए तो रोज़ाना के चार्ट पर नज़र डालें और ओसिलेटर संकेतकों के जरिए देखें कि एंट्री कहां बनती है। रुझान बढ़ने का हो तो लांग पोजिशन वहां पर लें (यानी वहां खरीदें) रोज़ान के चार्ट पर जहां भाव बढ़ते हुए ईएमए को छू रहे हों। जब-जब पुलबैक हो, खरीद बढ़ा सकते हैं। जब एमएसीडी हिस्टोग्राम जैसे रोज़ के भावों के ओसिलेटर खरीद का संकेत फेंक रहे हों, तब भी आप खरीद बढ़ा सकते हैं। एक सूत्र हमेशा के लिए गांठ बांध लें कि खरीदना तभी है जब भाव साप्ताहिक ईएमए के नीचे हों और रोज़ाना का ईएमए बढ़ रहा हो।

दूसरी तरफ, अगर ट्रेंड/रुझान गिरावट का हो तो पूरी प्रक्रिया उलट जाती है। जब साप्ताहिक चार्ट पर ईएमए गिरने का रुख दिखाए और रोज़ाना के ओसिलेटर तेज़ी पकड़कर ओवरबॉट अवस्था में पहुंच गए हों तब शॉर्ट सेल करने का अच्छा मौका होता है। मूल सोच यह है कि बाज़ार के ट्रेंड के साथ खुद को जोड़ें और ट्रेंड के दौरान उठती-गिरती लहरों के हिसाब से अपनी शुरुआती पोजिशन बनाएं। अगर आप ट्रेडिंग में नए हैं तो केवल एक छोटी पोजिशन को ट्रेड करना सीखें। हालांकि जैसे-जैसे आप नोट बनाने लगेंगे, आपकी पोजिशन बड़ी होती जाएगी और तब आपको अपनी पूंजी के सही प्रबंधन के लिए ‘2% और 6%’ का फॉमूला अपनाना होगा। [यह ट्रेडिंग में कमाई का बेहद अहम फॉर्मूला है जिसे हम अगले शनिवार को यहीं पर पेश करेंगे]

अगर आपको लगता है कि आपने नया ट्रेंड अच्छी तरह पहचान लिया है तो बिना समय गंवाए खटाक से उस पर लद लें। आप छोटी मात्रा में ट्रेड करके अपना रिस्क घटा सकते हैं। लेकिन भावों के पुलबैक या नीचे आने का इंतज़ार न करें। अगर बाद में ऐसा होता है तो अपनी पोजिशन बढ़ा सकते हैं। नए ट्रेंड को कूदकर पकड़ लेना किसी को हड़बड़ी लग सकता है। लेकिन देखना ही है तो बाज़ार के साथ चलते हुए देखना ज्यादा अच्छा है। दुनिया के महान ट्रेडर जॉर्ज सोरोस ने यूं ही नहीं कहा है: पहले खरीदो, छानबीन बाद में कर लेना। याद रखें, यहां बात नए ट्रेंड के दौरान ट्रेडिंग की हो रही है।

ट्रेंड में ट्रेडिंग का मतलब है कि अपनी शुरुआती पोजिशन को हर ऊंच-नीच में बनाकर रखना। जब आप बहुत बड़ी मछली का शिकार कर रहे हों, तब काफी धैर्य और वक्त की जरूरत पड़ती है। अगर मुठ्ठी भर लोग ही बड़े ट्रेंड के दौरान बड़ी कमाई कर पाते हैं तो इसकी एक अहम वजह यह है कि ज्यादातर लोग इतने हैरान-परेशान और हाइपर-एक्टिव हो जाते हैं कि धैर्य रखना और इंतज़ार करना ही भूल जाते हैं। ट्रेंड और स्विंग में बुनियादी फर्क है। स्विंग में आप खटाखट मुनाफा कमाकर निकल लेते हैं। लेकिन ट्रेंड के दौरान तब तक अपनी पोजिशन बनाए रखनी चाहिए, जब तक साप्ताहिक संकेतक सपाट न हो जाए या अपनी दिशा न पलट लें।

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3 Comments

  1. एक सूत्र हमेशा के लिए गांठ बांध लें कि खरीदना तभी है जब भाव साप्ताहिक ईएमए के नीचे हों और रोज़ाना का ईएमए बढ़ रहा हो।

    EMA = 20 days or 50 days ????

  2. Sir, Oscillator kaun si wali len? Aur uski parameters kya hogi?
    Aur intraday ke liye MACD ki parameters kitna hona chahiye?

    Advance me dhanyabad!

  3. गालिब जी, असल में ईएमए कितने दिन का लेना है, यह खास स्टॉक के भावों के चक्र पर निर्भर करता है। मान लीजिए कोई शेयर 40 दिन में घूमता है तो उसका आधा यानी 20 दिन का ईएमए लेना होता है। इसका वास्ता इससे भी है कि आप कितने दिनों के लिए ट्रेड करना चाहते हैं। लेकिन इसे कम से कम 13 दिन का रखना चाहिए क्योंकि यह ट्रेंड को बतानेवाला संकेतक है और छोटे समय में खास काम नहीं करता। डेली और वीकली चार्ट पर समान दिनों के ईएमए को परखना चाहिए। जैसे 13 दिन ईएमए देखना है तो दोनों पर यही ईएमए निकालकर देखें।

    भक्त बहादुर जी, आपके इस सवाल के संदर्भ में अगले शनिवार, यानी 27 जुलाई को विस्तार से लिखूंगा। अगर कोई आकस्मिकता नहीं आई तो…

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